नई दिल्ली: देश के कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि एक महत्वाकांक्षी शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम वक्त की मांग है. इससे अर्थव्यवस्था की सूरत बदल सकती है. साथ ही लाखों भारतीयों के जीवन स्तर में उल्लेखनीय सुधार भी होने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि बेरोजगारी और अल्प बेरोजगारी में कमी तथा आमदनी में बढ़ोतरी जैसे प्रयासों से छोटे कस्बों में मांग बढ़ेगी और सफल उद्यमिता के लिए परिस्थितियां पैदा होंगी.
सारथी आचार्य, विजय महाजन और मदन पटकी जैसे भारत के कुछ प्रमुख बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं ने महत्वाकांक्षी 'रीथिंकिंग इंडिया सीरीज' परियोजना के तीसरे खंड में बेरोजगारी की समस्या के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल की.
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इसमें सार्वजनिक सेवाओं और सुविधाओं के जरिए जीवन स्तर में सुधार के सुझाव दिए गए हैं. इसके अलावा कौशल विकास के जरिए निजी क्षेत्र में रोजगार और उत्पादकता में बढ़ोतरी, अनौपचारिक क्षेत्र में आय में वृद्धि और पर्यावरण क्षरण को रोकने की बात भी कही गई है.
इस श्रृंखला के ताजा अंक रिवाइविंग जॉब्स: एन एजेंडा फॉर ग्रोथ को विश्व श्रम दिवस के अवसर पर पेंगुइन रैंडम हाउस ने जारी किया.
इसमें कहा गया कि 2012 के बाद श्रम बल में प्रवेश करने वाले युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है, जबकि नई नौकरियों की संख्या घटी है, ऐसे में यह स्थिति 2020 और 2030 के बीच अधिक गंभीर हो सकती है, क्योंकि श्रम बल में बढ़ोतरी जारी रहेगी.
इसमें बताया गया है कि भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश की शेष अवधि का बेहतर ढंग से इस्तेमाल कैसे कर सकता है. साथ ही चेतावनी दी गई है कि ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में आने वाले दशकों में लाखों लोगों को गरीबी का सामना करना पड़ेगा.
(पीटीआई-भाषा)