नई दिल्ली : वन नेशन, वन इलेक्शन, पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में तीसरी बार इस मुद्दे पर जोर दिया है. इसका मूल उद्देश्य समय और धन की बचत है. बीजेपी ने समय-समय पर इस मांग को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाया. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव केवल चर्चा का विषय नहीं है, बल्कि यह भारत की जरूरत है. हर कुछ महीनों में भारत में कहीं न कहीं चुनाव होते हैं. इससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं. लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर देश में लंबे समय से बहस चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसका समर्थन किया है. चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग ने इस मामले पर चर्चा की है. हालांकि, कुछ ही राजनीतिक दल इसके पक्ष में हैं. ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है. ऐसे में वन नेशन, वन इलेक्शन पर गहन मंथन जरूरी है.
स्वतंत्रता के बाद की अवधारणा 1951 से 1967 तक केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने की व्यवस्था थी. इस समय अवधि के दौरान राज्य के चुनाव पूरे या आंशिक रूप से लोकसभा चुनाव के साथ हुए हैं. 1951-52 में सभी राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ हुए थे, लेकिन धीरे-धीरे राज्यों के पुनर्गठन और सरकारों के विघटन के कारण यह क्रम बिगड़ता गया.
1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं को भंग करने के कारण, समसामयिक चुनावों की प्रणाली के लिए एक समस्या उत्पन्न हो गई थी. वास्तव में, दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग हो गई. इस प्रकार, तब से राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनाव अलग-अलग हुए हैं. 1957 में लोकसभा चुनावों के साथ, राज्य में केवल 76 प्रतिशत चुनाव हुए, जबकि 1962 और 1967 में यह आंकड़ा 67 प्रतिशत तक पहुंच गया. 1970 तक चुनाव कराने की परंपरा समाप्त हो गई.
सबसे पहले आडवाणी चर्चा में आए पिछली सदी के अंतिम दशक में, जब भारतीय जनता पार्टी चुनावों पर हावी होने लगी, तो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की बहस फिर से उठी. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी देश में इस व्यवस्था को लागू करने के मुखर समर्थक हैं.
विधि आयोग की सिफारिश
1999 में, तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान, विधि आयोग ने इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अगर विपक्ष किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती है, तो उसी समय एक अन्य वैकल्पिक सरकार के पक्ष मे विश्वास प्रस्ताव लाना भी सुनिश्चित होना चाहिए.
2015 में, कानून और न्याय पर संसदीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की.
2018 में, विधि आयोग ने इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, जिसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस प्रणाली का समर्थन किया और कुछ ने विरोध किया. कुछ राजनीतिक दल इस विषय पर तटस्थ रहे.
पीएम नरेंद्र मोदी की खास दिलचस्पी
जनवरी 2017 में, एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव का व्यवहार्यता से अध्ययन करने की बात की. यह आवश्यकता तीन महीने बाद नीति आयोग के साथ राज्य के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी दोहराई गई. इससे पहले दिसंबर 2015 में, राज्यसभा सदस्य ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता वाली एक संसदीय समिति ने भी इस चुनाव प्रणाली के कार्यान्वयन पर जोर दिया था.
दोनों चुनाव दो चरण में कर सकते हैंः आयोग
एक देश एक चुनाव के विषय पर नीति आयोग द्वारा तैयार एक नोट में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 2021 तक दो चरणों में हो सकते हैं. अक्टूबर 2017 में, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि आयोग तैयार है एक साथ चुनाव कराने के लिए, लेकिन निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है.