कोलकाता :पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के धनियाखली की रहने वाली प्रज्ञा देबनाथ 2009 में अपने घर से लापता हो गई थी. दस साल बाद 2019 में उसे बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह अब प्रज्ञा देबनाथ नहीं, बल्कि उसका नया नाम आयशा जन्नत मोहोना हो गया था.
यह मेधावी छात्रा जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) की महिला प्रकोष्ठ की सक्रिय सदस्य निकली. भारत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अल हलीफ उर्फ अबू इब्राहिम, उपमहाद्वीप में सबसे खूंखार इस्लामिक स्टेट (आईएस) संचालकों में से एक को 2020 में बेंगलुरु से गिरफ्तार किया था. यह आईएस हैंडलर पहले अर्थशास्त्र का एक मेधावी छात्र था.
सुजीत चंद्र देबनाथ के वेश में हलीफ बेंगलुरु में एक राजमिस्त्री के सहायक के रूप में काम कर रहा था. उसकी गिरफ्तारी एनआईए जांचकर्ताओं के लिए आश्चर्य का विषय रहा. ऐसे कई उदाहरण हैं जब आतंकी संचालकों ने धर्म का इस्तेमाल जांचकर्ताओं के लिए एक आवरण के रूप में किया है.
कोलकाता के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के अधिकारी ने कहा कि आतंकवादी समूहों के लिए धर्म अब वर्जित नहीं, बल्कि वे इसे अपनी पहचान छिपाने के लिए एक जरिया के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. धर्म बदलना अब इन आकाओं के लिए कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, बल्कि वे जांच एजेंसियाें को चकमा देने के लिए इसका प्रभावी ढंग से उपयोग कर रहे हैं.
एसटीएफ अधिकारी शहर के दक्षिण काेलकाता के हरिदेबपुर से कोलकाता पुलिस बल द्वारा हाल ही में की गई गिरफ्तारी का जिक्र कर रहे थे. कुछ दिनों पहले, एसटीएफ ने तीन जेएमबी संचालकों - नजीउर रहमान पावेल, मिकाइल खान और रबीउल इस्लाम को गिरफ्तार किया था - जो भारत में घुस आए थे और शहर के एक पॉश रिहायशी इलाके में रह रहे थे.
पहचान से बचने के लिए पावेल ने हिंदू नाम जयराम बेपारी का इस्तेमाल किया. उसने और मेकैल खान उर्फ शेख शब्बीर ने हरिदेवपुर इलाके में दो हिंदू महिलाओं से दोस्ती की और अगले महीने शादी करने की योजना बनाई. इससे उन्हें बिना संदेह के और लोगों को भर्ती करने में मदद मिली. आईएएनएस ने परिवारों की रक्षा के लिए महिलाओं की पहचान का खुलासा नहीं किया है.