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महाराष्ट्र में निजी अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन संयंत्र लगाना आवश्यक : उच्च न्यायालय

बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि महाराष्ट्र में सभी निजी अस्पतालों के लिए आवश्यक है कि वे कोविड-19 के बढ़ते मामलों को संभालने के लिए अपने यहां ऑक्सीजन संयंत्र लगाएं.

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Published : May 6, 2021, 10:56 PM IST

मुंबई :न्यायमूर्ति दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर भी आने की संभावना है, इसलिए निजी अस्पतालों को आक्सीजन की अपनी मांग की पूर्ति के लिए अपने ऑक्सीजन संयंत्र लगाना जरूरी है.

पीठ ने कहा, ''अब तीसरी लहर आने की संभावना है, तो फिर निजी अस्पताल क्यों नहीं अपने ऑक्सीजन संयंत्र लगाएं? कम से कम वे अपने यहां मांगों की पूर्ति कर सकें? वे मरीजों से इलाज का शुल्क लेते हैं.' अदालत ने एक अखबार की खबर का जिक्र किया जिसके मुताबिक सांगली में एक निजी अस्पताल ने कोविड-19 के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए अपना ऑक्सीजन संयंत्र लगाया है.

इसने कहा कि अगर सांगली का एक अस्पताल ऐसा कर सकता है तो फिर मुंबई, नागपुर, पुणे और औरंगाबाद में निजी अस्पताल अपना ऑक्सीजन संयंत्र क्यों नहीं लगा सकते हैं? अदालत ने राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी से कहा, ''वक्त आ गया है. यह आवश्यक है कि उनके पास अपना संयंत्र हो. सरकार इस बारे में क्या सोचती है?'

पीठ ने कुंभकोनी को निर्देश दिया कि 11 मई तक अदालत को बताएं कि ऑक्सीजन संयंत्र बनाने के लिए किसी अस्पताल को कितने क्षेत्र की जरूरत है, क्या संभावित खर्च आता है और किस तरह के उपकरण आदि की जरूरत होती है.

अदालत ने कहा, ''दूसरे राज्यों में आक्सीजन की कमी की वजह से रोजाना मौतें हो रही हैं. हम आक्सीजन की कमी की वजह से महाराष्ट्र में एक भी मौत के बारे में नहीं सुनना चाहते.' अदालत कोविड-19 से जुड़े विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

इस मामले की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कहा कि महाराष्ट्र को केन्द्र से पर्याप्त संख्या में रेमडेसिविर नहीं मिल रही है. उन्होने कहा कि राज्य सरकार के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक मई को उसे 89,000 शीशी रेमडेसिविर की आपूर्ति की जानी थी और केन्द्र द्वारा चिन्हित सात निजी निर्माताओं को दैनिक आधार पर इसे भेजना था.

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उन्होने कहा कि राज्य को कम से कम 51,000 शीशी रेमडेसेविर रोजाना चाहिए लेकिन उसे रोजाना सिर्फ 35,000 शीशियां ही मिल रही हैं.

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