पटना:बिहार के सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता समाजवादी आंदोलन के गर्भ से निकले हैं. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, सुशील मोदी सरीखे नेता लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर बने रहे. बिहार की राजनीति में दूसरी पंक्ति के लीडरशिप विकसित नहीं हुई या उन्हें आगे नहीं बढ़ाया गया.
जयप्रकाश नारायण ने बिहार में युवाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर आंदोलन किया था. जेपी आंदोलन के गर्भ से बिहार में कई नेता निकले, जो लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर बने रहे. लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, सुशील मोदी, सरीखे नेताओं ने बिहार को दिशा देने का काम तो किया, लेकिन इन ताकतवर नेताओं के नेतृत्व में दूसरी पंक्ति के लीडर सामने नहीं आ पाए.
छात्र राजनीति से तीन बड़े समाजवादी नेता उभरे
70 के दशक की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. ये वो दौर था जब गैर कांग्रेसी दल एक साथ आए. जेपी के आंदोलन से बिहार की राजनीति खासकर ( छात्र राजनीति ) से तीन बड़े समाजवादी नेता उभरे, इसमें लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार का नाम प्रमुख रूप से शामिल है. लालू यादव और नीतीश कुमार पटना यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति की पैदाइश हैं, जो आगे चलकर सत्ता के शिखर पर पहुंचे, लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था.
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लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने जहां परिवारवाद को बढ़ाया. वहीं, नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने खुद को परिवारवाद से अलग रखा. लेकिन इनके नेतृत्व में दूसरी पंक्ति के लीडरशिप विकसित नहीं हुई. तमाम समाजवादी नेता वट वृक्ष की भूमिका में दिखे. ऐसा वट वृक्ष जिसके नीचे कोई दूसरा पेड़ नहीं उग सकता है. नीतीश कुमार जिस समुदाय से आते हैं. इस समुदाय में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है, जिन्हें लंबे संघर्ष के बाद भी राजनीति में मुकाम नहीं मिला और वह संघर्ष के लिए मजबूर हैं.
इंजीनियर सुनील कुमार सिंह नालंदा क्षेत्र से आते हैं और राजनीति में इनकी अच्छी खासी दखल है. एमएलए बनने का मौका तो इन्हें मिला. लेकिन फिलहाल यह भी संघर्ष कर रहे हैं. नालंदा क्षेत्र से आने वाले इंजीनियर रामचंद्र सिंह संघर्षशील नेता हैं. रामचंद्र सिंह ने मुहान नदी के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया और आंदोलन 18 साल तक चला. 4 साल तक यह धरने पर बैठे रहे. लेकिन बिहार की राजनीति में जगह नहीं मिली.