सिमडेगा (झारखंड) :ज्ञान की देवी मां सरस्वती के मंदिर, देश में कम ही मिलते हैं, लेकिन सिमडेगा जिले के लोग इस मामले में सौभाग्यशाली हैं. यहां जिला मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर प्राकृतिक वादी में मां शारदा का भव्य मंदिर है. दो राज्यों की सीमा पर घने जंगल और ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित मां शारदा के मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है. खास बात यह है कि इस मंदिर की सीढ़ियां झारखंड में तो मां का गर्भगृह छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है.
घने जंगलों के बीच से चट्टानों को काटकर मंदिर के पास से बहती गिरमा नदी इस अद्भुत मंदिर की शोभा बढ़ा रही है. यह स्थान पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों को रिझाती है. गिरमा नदी की निर्मल जलधारा की आवाज हो या पक्षियों की चहचहाहट सब यहां आने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है. ऐसी प्राकृतिक छटा के बीच मंदिर को देखने वाले अधिक प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों को भी भूल जाएंगे. मां विद्यादायिनी सरस्वती के चरणों तले आसपास के गांव के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा भी दी जाती है, जो अन्य मंदिरों से इसे अलग बनाता है. दो राज्यों के बीच देश का यह इकलौता मंदिर है, जहां प्रकृति, आस्था और ज्ञान का अद्भुत संगम हो.
संकीर्तन के बाद पड़ा शारदाधाम नाम
करीब दो दशक पूर्व इस जगह पर मंदिर नहीं थे. यह परिक्षेत्र देवाघाट के नाम से प्रसिद्ध था. यहां दोनों राज्यों के सीमावर्ती गांव के लोग विशेष दिनों में मिलकर धार्मिक अनुष्ठान आदि संपन्न करते थे. वर्ष 1998 के अप्रैल माह में 15-20 गांव के लोगों ने संकीर्तन कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें संत असीमानंद महाराज को आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों ने असीमानंद महाराज से इस प्राकृतिक और आध्यात्मिक छटाओं से परिपूर्ण परिक्षेत्र के नामकरण करने का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद उन्होंने कहा कि यहां आध्यात्म और ज्ञान का अद्भुत संगम है. इसलिए यह जगह मां शारदे के नाम पर शारदाधाम कहलाएगा. बाद में शारदाधाम यहां का नाम हो गया.
ऐसे बने मंदिर
वर्ष 1999 में यहां बसंत पंचमी महोत्सव का आयोजन किया गया. शारदा सेवा समिति के सचिव त्रिलोचन प्रधान ने बताया कि इस महोत्सव में जसपुर के युवराज दिलीप सिंह जूदेव हजारों ग्रामीणों के साथ कस्तुरा से शारदाधाम तक आठ किलोमीटर की लंबी पदयात्रा करते हुए यहां पहुंचे थे. इस महोत्सव में असीमानंद महाराज, रामरेखा बाबा और बीरू गढ़ के पटैत साहब भी पहुंचे थे. वह महोत्सव बड़ा आध्यात्मिक और मनोरम था. महोत्सव के दौरान संत असीमानंद और रामरेखा बाबा ने नदी के पश्चिमी छोर पर मां शारदे का मंदिर और दक्षिणी छोर पर झारखंड प्रांत में महादेव के मंदिर की नींव रखवाकर दिलीप सिंह जूदेव को मंदिर के निर्माण की जिम्मेवारी सौंपी.