मेरठ:देश आज 24वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. 26 जुलाई 1999 को आज ही के दिन भारतीय सेना के वीर सपूतों ने कारगिल में चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' से भारत भूमि को घुसपैठियों से मुक्त कराया था. क्रांतिधरा मेरठ के वीर सपूतों ने 'ऑपरेशन विजय' में अदम्य साहस और शौर्य का प्रदर्शन कर दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे. इस ऑपरेशन के दौरान जिले के 5 सपूत देश की आन-बान-शान की खातिर मुकाबले में शहीद हुए थे. उनकी शहादत को ईटीवी भारत सलाम करता है.
कारगिल के ऑपरेशन विजय को 24 साल बीत चुके हैं. उस आपरेशन में मेरठ के वीर सपूतों ने दुश्मन को न सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दिया था, बल्कि जिले के 5 लालों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए दुश्मन को दांतों तले चने चबाने को मजबूर कर दिया था. पांचों लाल वीरगति को प्राप्त हुए थे. इतना ही नहीं कारगिल वार में मेरठ छावनी भी पीछे नहीं थी. उस वक्त मेरठ से भी दो सेना की रेजीमेंट कारगिल हिल पर भेजी गई थीं. ईटीवी भारत से बातचीत में जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी रिटायर्ड कैप्टन राकेश शुक्ला बताते हैं कि उस वक्त 18 गढ़वाल राइफल्स को कारगिल के द्रास सेक्टर में भेजा गया था. दुर्गम पहाड़ियों पर गढ़वाल राइफल्स के रणबांकुरों ने दुश्मन पर कहर बरपाया और द्रास की चोटियों पर कब्जा किया था.
उन्होंने बताया कि इतना ही नहीं इसके अलावा मेरठ छावनी से 197 कारगिल रेजीमेंट को भेजा गया था. उन्होंने बताया कि जो रेजिमेंट वहां गई थी, उसने ताबड़तोड़ गोलों की बौछार से दुश्मन का खात्मा कर दिया था. बता दें कि सेना की इस रेजीमेंट की वीरता को देखते हुए 2005 में इस रेजीमेंट को कारगिल टाइटल मिला था. कारगिल वार के दौरान जिले के 5 सपूत वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन, उनकी बहादुरी के जो किस्से हैं, वह हर किसी देशभक्त के लिए बेहद ही प्रेरित करने वाले हैं.
सीएचएम यशवीर सिंह
सीएचएम यशवीर सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से भारत सरकार ने सम्मानित किया था. वह कारगिल में 16 हजार फीट ऊंची तोलोलिंग पहाड़ी पर यशवीर चार्ली कंपनी के 90 जवानों का नेतृत्व कर रहे थे. उस दिन 12 जून की रात थी. वक्त था करीब ढाई बजे का. उन्होंने दुश्मन के बंकरों पर ग्रेनेड से हमला कर दिया. इस हमले में 18 गोले दुश्मन पर फेंके गए थे, जबकि 60 दुश्मन घुसपैठियों को उन्होंने मार गिराया था. दुश्मन को चित होता देख उनका व टीम का भी हौसला बढ़ गया था. दो बंकरों को नष्ट करने के बाद जब तीसरे बंकर को नष्ट वह कर रहे थे, तभी घात लगाए बैठे दुश्मनों ने एलएमजी से गोलियां बरसा दी थीं. गोलियों ने बहादुर यशवीर सिंह के माथे और सीने को छलनी कर दिया था. इसमें वह शहीद हो गए थे.
लांस नायक सत्यपाल सिंह, सेना मेडल
बलिदानी सत्यपाल सिंह भी सीएचएम यशवीर सिंह के साथ राजपुताना राइफल्स में थे. तोलोलिंग चोटी पर दुश्मन को मार गिराने और भगाने के बाद उनकी टुकड़ी टाइगर हिल की ओर बढ़ रही थी. तभी एक दुश्मन की तरफ से गोला आकर गिरा था. इसमें 28 जून 1999 को वह शहीद हो गए थे. उन्होंने घर से जाने से पूर्व अपनी पत्नी को बताया था कि वे 16-17 जुलाई तक घर आएंगे. वीरगति को प्राप्त हुए सत्यपाल सिंह को मरणोपरांत सेना मेडल से अलंकृत किया गया था.
सिपाही योगेंद्र सिंह, सेना मेडल