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भारत को जल्द से जल्द तैयारी करनी चाहिए, ताइवान पर कब्ज़ा होने तक इंतजार नहीं करना चाहिए: डॉ. शेन मिंग शिह

ताइवान को लेकर चीन के नजरिये पर ताइवान में राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसंधान प्रभाग के निदेशक और राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा अनुसंधान संस्थान (INDSR) में कार्यवाहक उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शेन मिंग शिह (Dr Shen Ming-Shih) से ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी ने बात की. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

Dr Shen Ming-Shih
डॉ. शेन मिंग शिह

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Published : Aug 12, 2023, 5:35 PM IST

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नई दिल्ली :ताइवान पर आक्रमण करने की कोशिश के साथ ही चीन द्वीप में अपनी सैन्य ताकत दिखाने में कोई कमी नहीं कर रहा है. हालांकि ताइवान पर चीन के संभावित आक्रमण के राजनीतिक और सैन्य परिणामों को समझने के लिए ईटीवी भारत ने ताइवान के रक्षा विशेषज्ञ डॉ. शेन मिंग शिह (Dr Shen Ming-Shih) से बात की. इस पर उन्होंने कहा कि चीन के ताइवान पर आक्रमण करने पर शुरुआत में तो भारत झिझकेगा क्योंकि उसे उम्मीद रहेगी कि उसके अपने हितों को साधने का मौका मिलेगा. लेकिन अगर भारत को पता चला कि ताइवान पर कब्जे के बाद चीन का अगला लक्ष्य चीन-भारत सीमा होगी तो वह सतर्क रहेगा.

बता दें कि डॉ. शेन मिंग शिह ताइवान में राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसंधान प्रभाग के निदेशक और राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा अनुसंधान संस्थान (INDSR) में कार्यवाहक उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं. शिह ने कहा कि युद्ध के हालात में भारत के लिए चीन के पश्चिमी हितों का फायदा उठाने का भी मौका है. वह या तो चीन पर संयुक्त रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ सहयोग करे या चीन पर दबाव बनाने और चीन का पतन करने के लिए एक लोकतांत्रिक गठबंधन बनाए. इसके मद्देनजर भारत को जल्द से जल्द तैयारी करनी चाहिए, उसे ताइवान पर कब्जा होने तक का इंतजार नहीं करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि कि चीन के भारत प्रति इरादों को देखते हुए जल्दी से रक्षा तैयारी करनी होगी. वहीं चीन को आक्रमण से रोकने के लिए मजबूत सैन्य क्षमता का उपयोग करना होगा और लोकतांत्रिक देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना होगा. क्योंकि एक तानाशाही और शक्तिशाली कम्युनिस्ट देश भारत और दुनिया के लिए एक आपदा है. हाल ही में, चीन को एक राजनयिक संकेत देने के लिए सशस्त्र बलों के तीन सेवानिवृत्त प्रमुख-एडमिरल करमबीर सिंह, एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया और सेना के जनरल मनोज नरवणे चर्चा के लिए ताइपे में थे. इसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, ताइवानी नेतृत्व के विभिन्न वर्गों के साथ जुड़ना और अचानक आए संकट से निपटने के तरीके पर भारतीय सेना का दृष्टिकोण प्रस्तुत करना था. तीन सेवानिवृत्त प्रमुखों की यह यात्रा ताइवान के उस दावे के बाद हुई, जिसमें कहा गया था कि पांच चीनी युद्धपोतों के साथ 10 चीनी विमान उसके हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के साथ लड़ाकू तैयारी की गश्त में लगे हुए थे.

हालांकि भारत एक चीन नीति का पालन करता है और ताइवान के साथ अभी तक उसके औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं. हालांकि तीन प्रमुखों की महत्वपूर्ण यात्रा को भारत के रुख में बदलाव के संकेत के रूप में देखा गया है. इसके अलावा, ताइवान के रक्षा विशेषज्ञ ने बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए अपने चौथे कार्यकाल को जारी रखने की आवश्यकता के आधार पर ताइवान का एकीकरण एक मील का पत्थर साबित होगा. लेकिन उसके तरीकों में शांतिपूर्ण एकीकरण और बलपूर्वक एकीकरण शामिल है. उन्होंने कि यदि ताइवान शांतिपूर्ण पुनर्मिलन स्वीकार नहीं करता है तो शी ताइवान को बलपूर्वक आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करेंगे या फिर बलपूर्वक ताइवान को नष्ट कर देंगे.

शिह ने कहा कि हाल के वर्षों में ताइवान के आसपास लगातार सैन्य बल का प्रदर्शन कर रहा है, जो एक तरह की सैन्य जबरदस्ती है. उन्होंने कहा कि अन्य देशों को डरने और समर्पण करने के लिए विवश करने का आधिपत्यवादी तरीका है. इसे भारत-चीन की सीमा पर भी देखा जा सकता है. विशेषज्ञ ने कहा कि हालांकि ताइवान हार नहीं मानेगा. वहीं उसे अपने मजबूत सैन्य विरोध के अलावा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद मिलने की भी उम्मीद है. क्योंकि ताइवान को लोकतांत्रिक विकास, भू रणनीतिक मूल्यों पर उसे समर्थन मिलेगा.

ताइवान पर युद्ध को लेकर भारत के द्वारा नीति बनाए जाने के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के ताइवान संबंध अधिनियम का हवाला देते हुए एक नई नीति अपनानी चाहिए, जिसमें कहा गया है कि ताइवान चीन का हिस्सा नहीं है. उन्होंने कहा कि ताइवान और भारत दोनों लोकतांत्रिक देश हैं. हालांकि वे अभी बहुत दूर हैं, लेकिन दोनों ही देशों के सामने दुश्मन चीन को लेकर सहयोग के कई अवसर हैं. उदाहरण के लिए पीएलए की सैन्य खुफिया जानकारी, रक्षा उद्योग सहयोग, सैन्य कर्मियों के आदान-प्रदान, संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण के लिए कई अवसर हैं. भारत और ताइवान को कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ लड़ने के लिए लोकतांत्रिक राज्यों के सहयोगी में शामिल होने की जरूरत है.

डॉ.शेग ने कहा कि हालांकि भारत सबसे बड़ा देश बन गया है, इसलिए उसे चीन को लेकर अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए. इसके बजाय उसे ताइवान के माध्यम से चीन की कमजोरियों को समझना चाहिए और चीन के कम्युनिस्ट शासन का पतन और नष्ट होने देना चाहिए. हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि भारत और ताइवान इंडो-पैसिफिक में चीन के आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक सहयोग बढ़ा रहे हैं. हालांकि, चीन और ताइवान के बीच संभावित संघर्ष से निपटने के लिए नई दिल्ली को विभिन्न क्षेत्रों में द्वीप राष्ट्र के साथ अधिक सहयोग पर जोर देना चाहिए. खासकर जब ताइवान एक एडवांस प्रोडक्शन हाउस के रूप में उभर रहा है. उन्होंने कहा कि नई दिल्ली को संभवत: क्वाड के भागीदारों के साथ मिलकर काम करना चाहिए और उन्हें अपनी बाधाओं और अपेक्षाओं से अवगत कराना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि ताइवान को आक्रमण से मुक्त रखने के लिए क्वाड के प्रयासों को तेज करना चाहिए.

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