नई दिल्ली :ताइवान पर आक्रमण करने की कोशिश के साथ ही चीन द्वीप में अपनी सैन्य ताकत दिखाने में कोई कमी नहीं कर रहा है. हालांकि ताइवान पर चीन के संभावित आक्रमण के राजनीतिक और सैन्य परिणामों को समझने के लिए ईटीवी भारत ने ताइवान के रक्षा विशेषज्ञ डॉ. शेन मिंग शिह (Dr Shen Ming-Shih) से बात की. इस पर उन्होंने कहा कि चीन के ताइवान पर आक्रमण करने पर शुरुआत में तो भारत झिझकेगा क्योंकि उसे उम्मीद रहेगी कि उसके अपने हितों को साधने का मौका मिलेगा. लेकिन अगर भारत को पता चला कि ताइवान पर कब्जे के बाद चीन का अगला लक्ष्य चीन-भारत सीमा होगी तो वह सतर्क रहेगा.
बता दें कि डॉ. शेन मिंग शिह ताइवान में राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसंधान प्रभाग के निदेशक और राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा अनुसंधान संस्थान (INDSR) में कार्यवाहक उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं. शिह ने कहा कि युद्ध के हालात में भारत के लिए चीन के पश्चिमी हितों का फायदा उठाने का भी मौका है. वह या तो चीन पर संयुक्त रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ सहयोग करे या चीन पर दबाव बनाने और चीन का पतन करने के लिए एक लोकतांत्रिक गठबंधन बनाए. इसके मद्देनजर भारत को जल्द से जल्द तैयारी करनी चाहिए, उसे ताइवान पर कब्जा होने तक का इंतजार नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कि चीन के भारत प्रति इरादों को देखते हुए जल्दी से रक्षा तैयारी करनी होगी. वहीं चीन को आक्रमण से रोकने के लिए मजबूत सैन्य क्षमता का उपयोग करना होगा और लोकतांत्रिक देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना होगा. क्योंकि एक तानाशाही और शक्तिशाली कम्युनिस्ट देश भारत और दुनिया के लिए एक आपदा है. हाल ही में, चीन को एक राजनयिक संकेत देने के लिए सशस्त्र बलों के तीन सेवानिवृत्त प्रमुख-एडमिरल करमबीर सिंह, एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया और सेना के जनरल मनोज नरवणे चर्चा के लिए ताइपे में थे. इसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, ताइवानी नेतृत्व के विभिन्न वर्गों के साथ जुड़ना और अचानक आए संकट से निपटने के तरीके पर भारतीय सेना का दृष्टिकोण प्रस्तुत करना था. तीन सेवानिवृत्त प्रमुखों की यह यात्रा ताइवान के उस दावे के बाद हुई, जिसमें कहा गया था कि पांच चीनी युद्धपोतों के साथ 10 चीनी विमान उसके हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के साथ लड़ाकू तैयारी की गश्त में लगे हुए थे.
हालांकि भारत एक चीन नीति का पालन करता है और ताइवान के साथ अभी तक उसके औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं. हालांकि तीन प्रमुखों की महत्वपूर्ण यात्रा को भारत के रुख में बदलाव के संकेत के रूप में देखा गया है. इसके अलावा, ताइवान के रक्षा विशेषज्ञ ने बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए अपने चौथे कार्यकाल को जारी रखने की आवश्यकता के आधार पर ताइवान का एकीकरण एक मील का पत्थर साबित होगा. लेकिन उसके तरीकों में शांतिपूर्ण एकीकरण और बलपूर्वक एकीकरण शामिल है. उन्होंने कि यदि ताइवान शांतिपूर्ण पुनर्मिलन स्वीकार नहीं करता है तो शी ताइवान को बलपूर्वक आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करेंगे या फिर बलपूर्वक ताइवान को नष्ट कर देंगे.