शिमला:कई बार राज्य सरकारें अदालतों में ऐसे मामले लेकर पहुंच जाती हैं, जहां उन्होंने न्यायाधीशों से न केवल फटकार मिलती है, बल्कि सजा के तौर पर कॉस्ट भी अदा करनी पड़ती है. हिमाचल सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. महज ढाई हजार रुपये बचाने के लिए राज्य सरकार ने एकल पीठ के फैसले को डबल बैंच में चुनौती दी. हाई कोर्ट की डबल बैंच से न केवल राज्य सरकार को लताड़ सुननी पड़ी, बल्कि ढाई हजार रुपये बचाने की जुगत लगाने पर उल्टा दस हजार रुपये की कॉस्ट भी भुगतनी होगी.
मामला दरअसल यूं है-दस साल पहले 31 मई 2013 को राजेंद्र फिष्टा तहसीलदार के पद से रिटायर हुए थे. राज्य सरकार ने उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया. यह सेवा विस्तार उन्हें रिटायरमेंट से अगले दिन यानी पहली जून से मिला. इस एक्सटेंशन की अधिसूचना में ये दर्ज किया गया था कि राजेंद्र फिष्टा आखिरी सैलरी को छोडक़र किसी भी वेतन वृद्धि के हकदार नहीं होंगे. फिष्टा ने बाद में विभाग से लिखित में गुहार लगाई कि वो जुलाई 2013 से एक नियमित वेतन वृद्धि पाने के हकदार हैं. विभाग ने उनके इस आवेदन को खारिज कर दिया. आवेदन खारिज होने के बाद राजेंद्र फिष्टा ने हर के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की.
सिंगल बेंच ने दिया पक्ष में फैसला- हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने वेतन वृद्धि के मामले में राजेंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया. एकल पीठ ने कहा कि राजेंद्र फिष्टा जुलाई 2013 से वेतन वृद्धि के हकदार हैं. एकल पीठ के इस फैसले को राज्य सरकार ने डबल बैंच में चुनौती दी.