नई दिल्ली:दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत की आजादी से जुड़े आंदोलनों में भाग लेने वाले एक 96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को 'स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन' के तहत भुगतान करने में ढुलमुल रवैया अपनाने और उसमें विफल होने के लिए केंद्र सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यायालय ने कहा कि यह मामला उस दुखद स्थिति को दर्शाता है जिसमें बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह को अपनी उचित पेंशन पाने के लिए 40 वर्षों से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा और दर-दर भटकना पड़ा.
कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह के प्रति केंद्र सरकार की निष्क्रियता उनका अपमान है. उस समय उत्तीम लाल सिंह को ब्रिटिश सरकार द्वारा अपराधी घोषित कर उनके खिलाफ कार्यवाही में उनकी पूरी जमीन कुर्क कर ली गई थी. न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन एक अगस्त 1980 से पेंशन राशि की तारीख तक छह प्रतिशत/वर्ष की ब्याज दर से केंद्र सरकार को 12 हफ्ते के भीतर जारी करने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि न्यायालय भारत संघ के उदासीन दृष्टिकोण के लिए, भारत संघ पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाना उचित है.
गौरतलब है कि उत्तीम लाल सिंह के मामले में बिहार सरकार ने मामले की सिफारिश की थी, लेकिन उनके द्वारा भेजे गएदस्तावेज केंद्र सरकार द्वारा खो दिए गए थे, जिसके बाद बिहार सरकार ने पिछले साल उत्तीम लाल सिंह के दस्तावेजों का एक बार फिर सत्यापन किया था.
उत्तीम लाल सिंह ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उनका जन्म वर्ष 1927 में हुआ था और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अन्य आंदोलनों में भाग लिया था. सितंबर 1943 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अभियुक्त बनाया और घोषित अपराधी घोषित कर दिया. उन्होंने मार्च 1982 में स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन के लिए आवेदन किया था. उनका नाम बिहार सरकार ने फरवरी 1983 में केंद्र सरकार को भेजा था और सितंबर 2009 में सिफारिश दोहराई गई थी.