पहला कारण, महाराष्ट्र में मौजूद गठबंधन सरकार की ही तर्ज पर, झारखंड में भी जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी को यकीन है, कि अगर बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में भी सामने आई, तो भी ये तीनों दल गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब हो जायेंगे. इनकी उम्मीदों को हवा देने में सिर्फ बीजेपी के खिलाफ वोट का इकट्ठा होना कारण नहीं है. इन दलों ने हाल ही में बीजपी से सीट बंटवारे पर असहमति के चलते नाता तोड़ने वाली ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) पर भी अपनी उम्मीदें टिका रखी हैं.
वोट प्रतिशत का गिरना एक बड़ी चिंता
दूसरा, हरियाणा के चुनावी नतीजों ने इस बात को भी बल दिया है कि, हाल के आम चुनावों में बीजेपी ने जो वोट प्रतिशत हासिल किया था, उसमें गिरावट आयेगी. इसके कारण पार्टी की सीटों में भी कमी आयेगी. हरियाणा में बीजेपी का वोट प्रतिशत आम चुनावों के 58% के आंकड़े से गिरकर, विधानसभा चुनावों में 36% पर पहुंच गया था. विपक्षी दलों के गठबंधन को झारखंड में भी बीजेपी के वोट प्रतिशत के गिरने की उम्मीद है. लोकसभा चुनावों में बीजपी-एजेएसयू गठबंधन को 56% वोट मिले थे.
BJP को गठबंधन देगा चुनौती
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष, हेमंत सोरेन का कहना है कि, बीजेपी के लिये कई और खतरे की घंटियां हैं. उनका कहना है कि 'विवादित भूमि अधिग्रहण बिल के कारण, गिरीजन, पार्टी से खासे नाराज हैं. इसके साथ ही जंगल अधिकार अधिनियम-2006 में बदलाव से करीब 12 लाख गिरीजनों को अपनी जंगल की जमीनों से हाथ धोना पड़ा है.' हेमंत सोरेन, जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन के साझा मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं. जेएमएम 43 सीटों पर, कांग्रेस 31 और आरजेडी 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
गिरीजन और नॉन-गिरिजन के मुद्दे को भुनाने के लिये, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं कि पार्टी ने पहली बार, राज्य में गिरीजन समुदाय का मुख्यमंत्री होने के प्रचलन को तोड़ा है. मौजूदा मुख्यमंत्री, रघुबर दास जो ओबीसी हैं, राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो गिरीजन समुदाय के बाहर के हैं. ये तब महत्वपूर्ण होता है जबकि, झारखंड की संरचना करते समय गिरीजन बहुल इलाके को बिहार से अलग किया गया था.
इसके अलावा, विपक्षी दल राज्य के मुस्लिम समुदाय को रिझाने में लगे हैं. बीजेपी सरकार के कार्यकाल में राज्य में लिंचिंग के कई मामले सामने आये, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय ने विपक्ष की तरफ रुख कर लिया. धर्म परिवर्तन को लेकर बीजेपी सरकार द्वारा कानून सख्त करने के कारण, इसाई धर्म को लोगों ने भी विपक्ष का दामन थाम लिया है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, रामेश्वर उरांव बीजेपी के हार के और भी कारण मानते हैं. उनका कहना है कि 'हाल के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बालाकोट हमले के बाद राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा. इसके कारण असल मुद्दों पर लोगों का ध्यान नहीं गया. वहीं इस समय वोटरों के दिमाग में बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी जैसे मुद्दे छाये हुए हैं. इन सबके कारण रघुबर दास सरकार के पांच सालों के खिलाफ विरोध की लहर भी है.'
इसके उलट बीजेपी, रघुबर दास सरकार के पांच सालों के शासन को उसका सबसे बड़ा हथियार मानती है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मन गिलुआ का कहना है कि 'राज्य बनने के 19 साल बाद भी, झारखंड में कभी एक पार्टी की सरकार नहीं रही. पिछले मुख्यमंत्रियों के आधे अधूरे कार्यकालों के मुकाबले, रघुबर दास एकमात्र मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है. वो ऐसा करने में इसलिये कामयाब हुए क्योंकि उन्होंने गिरीजनों के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर काम किया.'
गिलुआ, जो खुद गिरीजन हैं, जेएमएम पर गिरीजनों को धोखा देने का आरोप लगाते हैं. वो कहते हैं कि 'जेएमएम को राज्य बनाने का विरोध करने वाली कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन करता देख गिरीजन खुद को ठगा महसूस करते हैं.'
बीजेपी सरकार द्वारा गिरीजनों के विकास के लिये उठाये गये कदमों के बारे में गिलुआ कहते हैं कि 'दिसंबर 2014 में सरकार बनने के तुरंत बाद, आदिवासी विकास के फंड को 12,000 करोड़ से बढ़ाकर 21,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था. सरकार ने राज्य की संस्कृति की रक्षा के लिये आदिवासी गांवों को लगातार मदद दी है. इसी काम के लिये पांच लाख के अनुदान वाली आदिवासी ग्राम विकास समितियों का गठन किया गया.'