श्रीनगर : महाशिवरात्रि का त्योहार शुक्रवार को पूरे देश में मनाया जा रहा है. कश्मीरी पंडितों के लिए यह त्योहार काफी अहम माना जाता है. देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा इसे यहां ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है. कश्मीरी पंडित इसे 'हेरथ' के रूप में मनाते हैं. हेरथ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी अर्थ हररात्रि या शिवरात्रि होता है. आइए जानते हैं ऐसे मंदिर के बारे में जो समुद्री सतह से 1100 फीट उपर स्थित है. इस दिन यहां भारी संख्या में शिव भक्तों को जमावड़ा लगता है.
भोलेनाथ के इस पावन मंदिर को हम शंकराचार्य के नाम से जानते हैं. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर दो सौ साल से भी अधिक पुराना है. ऐसा भी माना जाता है जगदगुरु शंकराचार्य अपनी भारत यात्रा के दौरान यहां आये थे.
जबरवन पर्वत श्रृंखला पर स्थिति यह शिव मंदिर दुनियाभर के पर्यटकों और हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए आर्कषण का केंद्र बन गया है. यहां पर महाशिवरात्रि या हेरथ के दिन शिव भक्तों का भारी जमावड़ा रहता है.
महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर जम्मू कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों के अलावा दुनियाभर के तीर्थयात्री भगवान शिवलिंग की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं. तीर्थयात्रियों का मानना है कि भोलेनाथ किसी को निराश नहीं करते हैं, लेकिन शर्त यह है कि उनकी प्रार्थना दिल से की जाए.
इस दिन शिव के अनुयायी पूरी रात प्रार्थना करते हैं. इसके अलावा दुनिया को अंधेर और अज्ञानता से मुक्त करने के लिए उपवास और ध्यान भी लगाते हैं. इसी वर्ष सभी अनुयायी जम्मू और कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
शिवभक्त रेणुका गुप्ता ने ईटीवी भारत से कहा कि मैं अपने परिवार के साथ यहां भगवान शिव का दर्शन करने आई हूं. उन्होंने कहा कि बाबा से यही मुराद है कि पूरे विश्व का कल्याण के साथ-साथ हमारा भी कल्याण हो. हम पूरे विश्व में सुख शांति चाहते हैं. उन्होंने कहा जम्मू-कश्मीर में आने वाले दिनों में सुख शांति बनी रहे. इसलिए हमने आज यज्ञ किया है.
नेपाल से आए एक शिवभक्त ने कहा कि हमने यहां तक पहुंचने के लिए बस, जीप, ट्रेन से सफर तय किया. बाबा सब कुछ ठीक कर सकते हैं. मैं यहां बहुत ही उम्मीद और विश्वास के साथ आया हूं. उन्होंने कहा कि हमारा विश्वास है कि हमारी प्रार्थनाओं से दुनियाभर में शांति बहाल होगी.
काफी रोचक है मंदिर का इतिहास और वर्तमान
इतिहासकारों के अनुसार, राजा सैंडिमन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. बाद में लगभग 1368 ईसा पूर्व में राजा गोपादात्य ने इसकी मरम्मत करवाई थी. इसके बाद इस मंदिर की छत भूंकप के कारण टूट गई थी, जिसकी मरम्मत कश्मीर के राजा जैन-उल-आब्दीन ने करवाई थी फिर 1844 में सिख गवर्नर शेख गुलाम मोहिउद्दीन ने मंदिर के गुंबद का नवीनीकरण करवाया था.
विश्व प्रसिद्ध डल झील, शंकराचार्य मंदिर के पूर्व में स्थित है. जबकि दुर्रानी काल में बना हरिपर्वत किला पश्चिम में स्थित है. हरिपर्वत किले को कोइह ई मारन के नाम से भी जाना जाता है. किले में मस्जिद, मंदिर, गुरुद्वारा स्थित है, जिसे शिवभक्त सांप्रदायिक सद्भाव का एक अनूठा उदाहरण कहते हैं. सूर्य पूर्व दिशा में उगता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है. इन दौरान सूर्य की किरणें मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे पर समान रूप से पड़ती है.
दिलचस्प बात यह है कि मंदिर में 250 से अधिक सीढ़ियां हैं. यह हर वक्त अर्धसैनिक बलों का पहरा रहता है. सुरक्षा कारणों से मंदिर परिसर में और उसके आसपास कार, मोबाइल फोन और वीडियो कैमरे ले जाने की अनुमति नहीं है.