हैदराबाद : मध्यप्रदेश में सियासी उठापटक जारी है. कमलनाथ सरकार बचेगी या जाएगी, कहना मुश्किल है. कई विधायकों ने बगावत कर दी है. कुछ के इस्तीफे भी आ चुके हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर क्या इन विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कोई कार्रवाई की जा सकती है या नहीं. क्या है यह कानून और क्या हैं इनके प्रावधान, आइए इन पर एक नजर डालते हैं.
क्या है दल बदल विरोधी कानून
दल-बदल विरोधी कानून एक मार्च 1985 को अस्तित्व में आया था. इसका उद्देश्य अपनी सुविधा के हिसाब से पार्टी बदल लेने वाले विधायकों और सांसदों पर लगाम लगाना था. 1985 में संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. यह संविधान में 52वां संशोधन था.
1985 से पहले दल-बदल के खिलाफ कोई कानून नहीं था. नेताओं द्वारा दल-बदल को लेकर उस समय 'आया राम गया राम' मुहावरा खूब प्रचलित था.
दरअसल 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली, जिसके बाद से 'आया राम गया राम' प्रचलित हो गया.
1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार इसके खिलाफ विधेयक लेकर आई.
इसमें विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाने का काम किया. इसमें यह भी बताया गया है कि दल-बदल के कारण किस तरह से सदस्यता खत्म हो सकती है.
कब-कब लागू होगा दल-बदल कानून
अगर कोई विधायक या सांसद खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है, तो उस पर यह कानून लागू नहीं होता है. अगर कोई निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है, या सदस्य पार्टी व्हिप के बावजूद वोट नहीं करता है, या फिर कोई सदस्य सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उस पर यह कानून लागू होता है.
इसके अलावा किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी.
इन परिस्थितियों में नहीं जाती है सदस्यता
विधायक कुछ परिस्थितियों में सदस्यता गंवाने से बच सकते हैं. अगर एक पार्टी के दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी से अलग होकर दूसरी पार्टी में मिल जाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. ऐसी में न तो दूसरी पार्टी में विलय करने वाले सदस्य और न ही मूल पार्टी में रहने वाले सदस्य अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.
इसके अलावा जब पूरी की पूरी राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है तो यह कानून लागू नहीं होता. अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं तो भी यह कानून लागू नहीं होगा. अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते हैं तब भी विधायक या सांसद की सदस्यता को कोई खतरा नहीं है. इसके अलावा जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो भी यह कानून लागू नहीं होता.