नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में एक हिंदू पक्षकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि भगवान राम के अलावा अयोध्या में विवादित स्थल पर उनके जन्म स्थान को भी विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है और वह उस भूमि पर दावा करने के लिए मुकदमा करने में सक्षम है.
राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुस्लिम पक्षकारों की आपत्तियों पर जवाब देते हुए यह कहा.
दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी है कि देवता के जन्म स्थान को न्यायिक कार्यवाही से जुड़ा दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि हिंदुओं की यह याचिका राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर मुसलमानों के और उनके किसी कानूनी दावे के अधिकार को छीन लेगी.
वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा, यदि भगवान राम का जन्म स्थान माने जाने वाली इस भूमि को हिंदू श्रद्धापूर्ण मानते हैं और उन्होंने इस तरह की मान्यताओं को लेकर वहां पूजा अर्चना करना चाहा है, तो इस भूमि को उस प्रतिमा के साथ विधिक अधिकार प्राप्त माना जा सकता है.
परासरन ने कहा कि इस भूमि को स्पष्ट रूप से भगवान राम की माना जा सकता है.
वहीं, ‘राम लला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने इस मामले के सौहार्द्रपूर्ण हल के लिए मध्यस्थता के बारे में मीडिया में आई कुछ खबरों का जिक्र किया और कहा कि वह इसमें आगे भाग लेना नहीं चाहते हैं तथा पीठ से एक न्यायिक फैसला चाहेंगे.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक शुरूआती मध्यस्थता प्रक्रिया नाकाम हो जाने के बाद दशकों पुराने इस संवेदनशील मामले की छह अगस्त से प्रतिदिन कार्यवाही शुरू करने के बाद आज 34 वें दिन भी सुनवाई की.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने 18 सितंबर को कहा था कि वह मामले की प्रतिदिन सुनवाई जारी रखेगी और इस बीच विभिन्न पक्ष विवाद के हल के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं.
पीठ ने कहा था कि उसे तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का नेतृत्व कर रहे शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला का एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ पक्षकारों ने उनसे मध्यस्थता प्रक्रिया बहाल करने का अनुरोध किया है.
न्यायालय ने कहा था कि पक्षकार ऐसा करते हैं और मध्यस्थता समिति के समक्ष प्रक्रिया गोपनीय बनी रह सकती है.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि मामले में सुनवाई आखिरी चरण में है और वह 18 अक्टूबर तक कार्यवाही पूरा करना चाहती है.
पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.