जब यह सारे मामले शांत होंगे, तो यह तय है कि यह अपना असर भी दिखायेंगे. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, राज्य के कई हिस्सों में मुसलमानों के विरोध को साज़िश करार दे रही है. अंधेरे में हो रही पुलिस जांच अब कई अजीबो ग़रीब कहानियों को जन्म दे रही हैं.
पुलिस के खुफिया तंत्र की पूरी नाकामयाबी को छुपाने के लिये पुलिस विभाग राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की एक साज़िश को साबित करने पर अपनी सारी उम्मीदें लगाये बैठा है. कई जगहों पर 40-50 नक़ाबपोश गुंडों ने भीड़ में शामिल होकर पत्थरबाज़ी और आगज़नी की घटनाओं को अंजाम दिया. इसी के कारण आख़िरकार राज्य में कई जगह हिंसक घटनाऐं हुई. अब यूपी पुलिस इसी को आधार मानकर साज़िश की थ्योरी को साबित करने में लगी है.
उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर अतिवादी संगठन, पीपल्स फ़्रंट ऑफ इंडिया (पीएसआई) पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है. उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य में हुई हिंसक घटनाओं के पीछे इसी संगठन का हाथ है. पुलिस ने पीएफआई के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष, वसीम अहमद समेत 23 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. पीएफआई के दिल्ली मुख्यालय ने लखनऊ पुलिस के दावों को सिरे से ख़ारिज किया है.
जांचकर्ताओं का दावा है कि, पीएफआई पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है. यह संगठन, बांग्लादेश से आये ग़ैरक़ानूनी लोगों के बीच अपनी जड़ें मज़बूत करने में लगा है. तनाव के समय में हिंसा और अराजकता फैलाने के लिये, पीएफआई ने, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ़, रामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर आदि शहरों में ग़ैरक़ानूनी बांग्लादेशियों के स्लीपर सैल बना रखे हैं. अगर पुलिस के यह दावे सच भी हैं तो यह एक और खुफिया विफलता की तरफ़ इशारा करता है, क्योंकि इससे पहले कभी भी इस संदर्भ में पीएफआई का नाम सामने नहीं आया है.