नई दिल्ली :लोक सभा में आज जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अहम विधेयक पारित किया गया. इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुशी जाहिर की है. उन्होंने पीएम मोदी का भी आभार प्रकट किया. शाह ने ट्वीट कर लिखा 'मैं पीएम @narendramodi को धन्यवाद देता हूं. इस बिल के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की संस्कृति को बहाल करने के लिए उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है.'
शाह ने कहा, 'मैं जम्मू-कश्मीर की अपनी बहनों और भाइयों को भी आश्वस्त करना चाहता हूं कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के गौरव को वापस लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.' उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर के लोगों का लंबे समय से प्रतीक्षित सपना सच हो गया है!
गौरतलब है कि विधेयक के पारित होने के बाद कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी अब जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा होगी. लोक सभा में जब गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने सदन में इस विधेयक को पेश किया तब नेशनल कांफ्रेस के सांसद हसनैन मसूदी ने विधेयक को पेश करने का विरोध किया.
बहरहाल, गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से कश्मीरी, डोंगरी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं को जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा के तौर पर घोषित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग कश्मीरी, डोगरी और हिंदी को बड़ी संख्या में बोलते हैं और समझते हैं.
रेड्डी ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश में जितने लोग कश्मीरी बोलने वाले हैं, उनमें से 53.26 प्रतिशत जम्मू कश्मीर में हैं. लेकिन 70 साल तक वह आधिकारिक भाषा नहीं थी. यह ऐतिहासिक भूल थी. मोदी जी के नेतृत्व में ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जा रहा है और हम यह भी करेंगे. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार भाषा, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव में विश्वास नहीं रखती.
मंत्री के जवाब के बाद लोक सभा ने ध्वनिमत से जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 को मंजूरी प्रदान कर दी .
बहरहाल, मंत्री ने कहा कि 70 साल से उर्दू जम्मू कश्मीर की आधिकारिक भाषा है लेकिन जम्मू-कश्मीर में उर्दू भाषा बोलने वाले 0.16 प्रतिशत ही हैं. उन्होंने कहा कि उर्दू और अंग्रेजी दोनों को आधिकारिक भाषा के तौर पर जारी रखा जाएगा. उन्होंने कहा कि डोगरी वहां दूसरे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है.
बहरहाल, विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए हसनैन मसूदी ने कहा कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत यह सब किया जा रहा है लेकिन उच्चतम न्यायालय में इस अधिनियम को चुनौती दी गई है. इस पर संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में संवैधानिक शुचिता का पालन होता है. जब उच्चतम न्यायालय का फैसला आना है कि तो इस तरह का विधेयक नहीं लाया जा सकता.