नई दिल्ली : 'मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने इस पुरस्कार की कल्पना की और उन लोगों का भी जिन्होंने इसे मुझे देने का फैसला किया. मैं जानता हूं कि इस धरती मुझसे अधिक योग्य लोग हैं जो इस पुरस्कार के हकदार हैं. फिर भी मुझे इस पुरस्कार के लिए योग्य माना गया है. मैं यह भी जानता ही हूं कि मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी थोड़ा बहुत हासिल किया है उसका एक हिस्सा भी कई अन्य महिलाओं और पुरुषों के सहयोग के बिना हासिल नहीं किया जा सकता. उन सभी को धन्यवाद... जिन्होंने मेरी मदद की है... यहां मैं आपके साथ अपनी 'कृषि की विचारधारा' के बारे में व्यक्तिगत जानकारी साझा करना चाहता हूं.'
यह मार्टिन लूथर किंग ही थे जिन्होंने एक बार कहा था: "पूरी दुनिया, इसमें हर-एक जीवन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है... दुनिया पारस्परिक संबंधों का यह एक ऐसा नेटवर्क जिसमें होना हर-एक व्यक्ति के लिए अपरिहार्य है... सुबह का नाश्ता खत्म करते ही आप आधी से अधिक दुनिया पर निर्भर हो चुके होते हैं...
इसी तरह से हमारे ब्रह्मांड की संरचना हुई है, यही इसका परस्पर संबंधित गुण है. जब तक हम सभी वास्तविकताओं की परस्पर संबंधित संरचना के इस बुनियादी तथ्य को नहीं पहचानते, तब तक हमें धरती पर शांति नहीं मिलेगी."
खेती से बल्कि कृषि -संस्कृति जितनी अधिक वैश्विक परस्पर निर्भरता मानवीय आवश्यकता के किसी भी अन्य क्षेत्र में नहीं है. फिर भी शहरी जनता शायद ही कभी इस बात का सम्मान करती है कि हम इस दुनिया में हरे पौधों और उनकी खेती करने वाले किसानों के मेहमान है.
अनुभव बताता है कि जो देश किसानों और खेती को हल्के में लेते हैं. उन्हें देर-सबेर दुख ही मिलता है. फिर भी राष्ट्रीय विकास योजनाओं में कृषि क्षेत्र की प्राथमिकता स्थापित करने वाले कई आत्ममुग्ध योजनाकारों और राजनीतिक नेताओं में आत्मसंतुष्टि बढ़ती जा रही है. उन्हें जो सुरक्षा महसूस होती है वह झूठी है. हमारे पास खाद्य उत्पादन के मोर्चे पर आराम करने का समय नहीं है, जैसा कि मेरे अच्छे दोस्त डॉ. नॉर्मन बोरलॉग अक्सर हमें याद दिलाते हैं.
सच है, खाद्यान्न, दूध पाउडर और मक्खन का वैश्विक भंडार प्रतिदिन बढ़ रहा है. लेकिन इसके साथ ही भूखे पेट सोने वाले बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की संख्या भी बढ़ रही है. हमारे सभी बौद्धिक, तकनीकी, वित्तीय और आध्यात्मिक संसाधन इस सदियों पुरानी विडंबना का समाधान खोजने में क्यों विफल रहे हैं? क्यों?
संभवतः सुकरात ने हमें इसका उत्तर दिया था. सुकरात ने कहा कि कोई भी व्यक्ति राजनेता बनने के योग्य नहीं है यदि वह गेहूं की समस्या से अनभिज्ञ है. यदि राजनेता जो राष्ट्रीय नीतियों और प्राथमिकताओं को निर्धारित करते हैं, वे सभी खाद्य उत्पादन और समान वितरण की जरूरत से परिचित हो जाएंगे, तो भूख को जल्द ही अतीत की समस्या बनाया जा सकता है अन्यथा यह संभव नहीं होगा...