देहरादून:विकासनगर के त्यूणी क्षेत्र में सिलेंडर फटने की घटना में चार लोगों के झुलसने के साथ ही चार बच्चियों की जलकर मौत हो गई है. जानकारी के अनुसार यह मकान लकड़ी से बना था और सिलेंडर फटने के बाद आग इतनी भीषण हो गई कि उसपर काबू पाने में अग्निशमन विभाग को काफी मशक्कत करनी पड़ी. हालांकि, इस अग्निकांड के बाद तमाम तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल ये हैं कि पहाड़ों से पहले अंगीठी के धुएं से मौत होने की खबरें आती थीं, लेकिन अब गैस सिलेंडर फटने से जान जा रही हैं. लकड़ी के मकानों के लिए गैस सिलेंडर क्या खतरनाक साबित हो रहे हैं?
उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां कठिन हैं: उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाएं आती रहती हैं, जिससे जानमाल को काफी नुकसान पहुंचता है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में लोग खासकर लकड़ियों के मकानों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, अभी तक प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में लकड़ी के मकानों में आग लगने की घटना जंगलों में आग लगने की घटना की वजह से ही सुनाई और दिखाई देती रही है, लेकिन अब गैस सिलेंडर फटने की वजह से भी पर्वतीय क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं. विकासनगर के त्यूणी अग्निकांड का कारण भी गैस सिलेंडर फटने की वजह से लकड़ी के मकान में आग लगना माना जा रहा है.
अंगीठी की गैस ले चुकी कई जान: यही नहीं, प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों पर मौसम हमेशा ही ठंडा बना रहता है, लेकिन शीतलकाल के दौरान इतनी भीषण ठंड पड़ती है कि लोगों को अपने घरों में अंगीठी जलानी पड़ती है. प्रदेश में कई जगहों से अंगीठी की वजह से कई लोगों के मौत का मामला सामने आते रहे हैं. दरअसल, ठंड से बचने के लिए लोग अपने घरों में अंगीठी जला देते हैं और सो जाते हैं लिहाजा दम घुटने की वजह से कई लोगों की मौत हो जाती है. तो वहीं, अब सिलेंडर के फटने से मौतों का मामला भी प्रदेश में देखा जाने लगा है.
पहले लकड़ी जलाते थे पहाड़ के लोग, अब गैस सिलेंडर से बनाते हैं खाना: दरअसल, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी गैस सिलेंडर का इस्तेमाल बेहद कम ही होता है, क्योंकि वहां लोग अपने पारंपरिक साधनों के साथ ही चूल्हे पर खाना बनाते हैं. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से चलाई गई उज्ज्वला योजना और विकास कार्यों के तहत घर-घर तक गैस सिलेंडर पहुंचाने की योजना के चलते प्रदेश के अधिकांश हिस्सों तक सिलेंडर पहुंच गए हैं. पहले पर्वतीय क्षेत्रों में चूल्हे पर खाना बनाने से आग लगने के मामले बेहद कम ही सामने आ रहे थे लेकिन अब सिलेंडर से आग लगने के मामले काफी अधिक आने लगे हैं.
लकड़ी के मकान में आग ज्यादा तेज पकड़ती है: हालांकि, यह कोई एक क्षेत्र का मामला नहीं है बल्कि देश के तमाम हिस्सों से सिलेंडर फटने की वजह से घरों में आग लगने के मामले सामने आते रहे हैं. लेकिन पहाड़ के लिए चुनौती है, क्योंकि जब लोग लकड़ियों के मकान बनाते हैं और उसमें आग लगती है तो आग पर काबू पाना काफी मुश्किल होता है.
पेट्रोलियम कंपनी का दावा सेफ है सिलेंडर: हालांकि, पेट्रोलियम कंपनियां इस बात का दावा जरूर करती हैं कि उनका सिलेंडर पूरी तरह से सेफ और सिक्योर है, बावजूद इसके सिलेंडर फटने की घटनाएं सामने आने के बाद एक बार फिर से तमाम सवाल खड़े होने लगे हैं. लिहाजा यह कह सकते हैं कि लकड़ियों के मकान में चूल्हा जलाना या फिर गैस सिलेंडर का इस्तेमाल कभी ना कभी खतरनाक साबित हो जाता है.
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सावधानी है जरूरी: पहाड़ी जीवन शैली के जानकार भागीरथ शर्मा की मानें तो मकान चाहे लकड़ी का हो या सीमेंट का, कहीं पर भी सिलेंडर फटने की घटना हो सकती है. हालांकि, सीमेंट के मकानों में सिलेंडर फटने की घटना से रसोईघर और खाना बना रहे व्यक्ति को ही ज्यादा नुकसान पहुंचता है लेकिन लकड़ी का मकान होने के चलते आग पूरे घर में लग जाती है, जिससे घर में रहने वाले सभी लोग उसकी चपेट में आ जाते हैं. ऐसे में लकड़ी के मकानों में खाना बनाते वक्त तमाम सावधानियां बरतने की जरूरत होती है ताकि किसी भी तरह से आग लगने की घटना पर लगाम लगाई जा सके.