राजनांदगांव:धर्म की नगरी राजनांदगांव, जहां डोंगरगढ़ के ऊंचे पहाड़ों पर बसती हैं मां बम्लेश्वरी. जहां कई पर्वतों पर बसते हैं देवी-देवता. डोंगरगढ़ के दक्षिण दिशा में विशाल शिवधाम पर्वत स्थित है, जहां भगवान शिव विराजमान हैं. पहाड़ों के बीच जटाशंकर शिव का मंदिर है, जहां पूरे प्रदेश से लोग दर्शन को पहुंचते हैं. कोरोना संकट के डर से इस बार यहां श्रद्धालुओं की कमी देखने को मिल सकती है.
सावन के महीने में यहां की रौनक देखने लायक होती है. जिस पहाड़ी पर शिव जी विराजमान हैं. वह पर्वत अपने आप में शिवलिंग का आकार लिए हुए है. आश्चर्य की बात है कि यहां कई पत्थरों पर नाग देवता के आकर प्राकृतिक रूप से बने हुए हैं. हर साल यहां सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना कर ध्यान लगाते हैं.
भू-गर्भ से निकला है शिवलिंग
मान्यता है कि इस मंदिर में शिवलिंग भू-गर्भ से निकला है, जिसे स्थापित किया गया है. बताया जाता है कि सावन के महीने में यहां पर नाग-नागिन का जोड़ा देखने को मिलता है. इस मंदिर के आस-पास कई गुफाएं हैं. प्रकृति के बीच सुंदर छठा बिखेरता ये मंदिर लोगों के लिए पिकनिक का भी स्पॉट है. सावन के समय में यहां का दृश्य और भी मनमोहक होता है. हरी-भरी वादियों के बीच बसे इस शिवधाम में लोगों को शांति मिलती है और वह सभी परेशानियों से मुक्त हो जाते हैं.
इस मंदिर को लेकर प्रचलित हैं कई मान्यताएं
जिस पहाड़ पर भगवान शिव का वास है, वहां एक बड़ा मैदान है. जहां पर एक साथ 5 हजार श्रद्धालु बैठकर प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं. बुजुर्ग बताते हैं कि भगवान शिव-शंभू के त्रिशूल में आस्था रखने वाले लोग सावन में यहां बैठ कर तप करते थे और योगसिद्धि प्राप्त करते थे. जानकारी के मुताबिक यह पहाड़ों से भरा यह क्षेत्र कई वर्षों पुराना है, जहां कई ऋषि-मुनि भी आए हैं.
जड़ी-बूटियों से भरा है पहाड़ी इलाका
पहाड़ी से थोड़ी दूरी पर तपस्वी मंदिर से लगा हुआ यहां एक तालाब है. माना जाता है कि इसका पानी अदभुत है, क्योंकि इस तालाब के जल में स्नान कर अनेक तपस्वी अपनी साधना पूरी करते रहे हैं. मां बम्लेश्वरी देवी की पहाड़ी भी अनेक रहस्यमयी जड़ी बूटियों से लबरेज है. बरसात के समय में पानी इन जड़ी बूटियों से मिलकर इस तालाब में उतरता है. इस तरह इस तालाब का पानी आयुर्वेदिक औषधियों के रस और तपस्वियों के स्नान मात्र से ही रहस्यमयी और चमत्कारिक रूप से भरा हुआ है. ऐसी कई पुरानी कहानी इस मंदिर से जुड़ी हुई हैं.
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ऐसी मान्यता रही है कि भगवान महादेव अमरकंटक पर्वत से विचरण करते हुए यहां पहुंचे थे और यहां से होते हुए वे पचमढ़ी के लिए निकले थे. इस पर्वत पर कई जड़ी-बूटियों के पौधे हैं, जिनसे कई बीमारियों के उपचार किए जाते हैं. सावन के मौके पर यहां भक्तों के लिए प्रसाद की व्यवस्था की जाती है, जिसमें भांग, बेल का फल, दूध आदि शामिल हैं.