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छत्तीसगढ़ में प्रचलित जनजातीय विवाह पद्धतियां

छत्तीसगढ़ को आदिवासी संस्कृति के रूप में जाना जाता है. छत्तीसगढ़ की जनजातियों में कई तरह के विवाह प्रचलित है और वैध हैं.

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Published : Jan 7, 2021, 5:53 PM IST

Updated : Jan 8, 2021, 6:21 PM IST

Tribal marriage practices prevalent among the tribes of Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की जनजातियों में प्रचलित जनजातीय विवाह पद्धतियां

रायपुर: छत्तीसगढ़ की जनजातियों में कई तरह के विवाह प्रचलित है और वैध हैं. जनजातीय शादियों में पुजारी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों के आदिवासी विवाह में पुजारी की सेवाएं ली जाती हैं. आधुनिक संस्थानों और कानूनों के साथ संघर्ष की वजह से ट्राइबल सिस्टम की पहचान पर संकट मंडरा रहा है. लिहाजा छत्तीसगढ़ राज्य के जनजातियों में प्रचलित विवाह प्रथा भी एक विचार का विषय है.

5वीं अनुसूची

  • आदिवासियों के लिए संविधान में 5वीं अनुसूची बनाई गई है, क्योंकि आदिवासी इलाके आजादी के पहले स्वतंत्र थे. वहां अंग्रेजों का शासन-प्रशासन नहीं था. तब इन इलाकों को बहिष्कृत और आंशिक बहिष्कृत की श्रेणी में रखा गया.
  • 1947 में आजादी के बाद जब 1950 में संविधान लागू हुआ तो इन क्षेत्रों को 5वीं और छठी अनुसूची में वर्गीकृत किया गया.
  • जो पूर्णत: बहिष्कृत क्षेत्र थे उन्हें छठी अनुसूची में डाल दिया गया. जिसमें पूर्वोत्तर के 4 राज्य त्रिपुरा, मेघालय, असम और मिजोरम शामिल हैं.
  • जो आंशिक बहिष्कृत क्षेत्र थे, अंग्रेजों ने वहां भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया. उन्हीं क्षेत्रों को 5वीं अनुसूची में डाला गया. इसमें दस राज्य शामिल हैं. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और हिमाचल प्रदेश.
  • संविधान में 5वीं अनुसूची के निर्माण के समय तीन बातें स्पष्ट तौर पर कही गईं- सुरक्षा, संरक्षण और विकास
  • मतलब कि आदिवासियों को सुरक्षा तो देंगे ही उनकी क्षेत्रीय संस्कृति का संरक्षण और विकास भी किया जाएगा. जिसमें उनकी बोली, भाषा, रीति-रिवाज और परंपराएं शामिल हैं.
  • 5वीं अनुसूची में शासन और प्रशासन पर नियंत्रण की बात भी कही गई है. ऐसी व्यवस्था है कि इन क्षेत्रों का शासन-प्रशासन आदिवासियों के साथ मिलकर चलेगा.
  • मतलब इन क्षेत्रों को 5वीं अनुसूची में एक तरह से विशेषाधिकार मिले. स्वशासन की व्यवस्था की गई. जिसके तहत इन क्षेत्र में सामान्य क्षेत्र के आम कानून लागू नहीं होते. स्वशासन के लिए संविधान में ग्रामसभा को मान्यता दी गई है.
  • अनुसूचित जनजातियों पर प्रावधान लागू नहीं
  • सेक्शन 2 (2) में कहा गया है कि 'इसमें शामिल कुछ भी संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड 25 के अर्थ में किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होगा जब तक कि केंद्र सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अन्यथा निर्देश नहीं देती.'
  • इस तरह के अपराधों की सजा के लिए ऐसे धर्म के 'कस्टम' पर विचार किया जाएगा.
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय पर कहा है कि 'विशिष्ट दलीलों, सबूतों और कथित रिवाज' के सबूत के अभाव में दूसरी शादी को शून्य बना देना, आईपीसी की धारा 494 के तहत कोई अपराध संभवत: प्रतिवादी के खिलाफ नहीं किया जा सकता है.

क्या दूसरी पत्नी के लिए कोई कानूनी अधिकार है?

  • दूसरी पत्नी के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है. वास्तव में दूसरा विवाह शून्य माना जाता है. जिन महिलाओं के विवाह को शून्य घोषित किया गया है, वे बहुत पीड़ित हैं. दूसरे पति के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं, लेकिन कुछ तरीके हैं जिनसे वह अपने पति पर मुकदमा कर सकती है.
  • धोखाधड़ी-भारतीय दंड संहिता की धारा 495 में कहा गया है कि जो कोई भी अपने विवाह के तथ्य को बताए बिना किसी से विवाह करने का अपराध करता है, वह कारावास के साथ दंडनीय है जो दस वर्ष तक का हो सकता है और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा.

छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार के विवाह

  • दुधलोटवा विवाह- इस विवाह में चचेरे भाई और चचेरे भाई-बहन की शादी होती है. यह विवाह गोंड आदिवासी जीवन में ज्यादा प्रचलित है.
  • पारिंगधन विवाह- इस विवाह में अधिकांश जनजातियों में वधू का मूल्य देकर पत्नी प्राप्त करने की परंपरा है. यह प्रथा खैरवार जनजातियों में सबसे अधिक प्रचलित है. इसे क्रय विवाह भी कहा जाता है.
  • अरउतो विवाह- विधवा होने के बाद विधवा होने पर, पुनः विवाह करने की परंपरा को अर-यूटो विवाह कहा जाता है, जिसे हल्दी-पानी या विधवा विवाह के रूप में भी जाना जाता है.
  • लमसेना विवाह- इस शादी में लड़के को लड़की के घर जाना होता है और ससुराल वालों के सामने अपनी शारीरिक क्षमता का परिचय देना होता है. जब लड़का सफल हो जाता है तो लड़की का परिवार शादी के लिए सहमति देता है. इसलिए इस विवाह को लमसेना या सेवा या चारघिया विवाह कहा जाता है. कंवर जनजाति में इसे घरजन और बिंझवार जनजाति में इसे घरजिया के नाम से जाना जाता है.
  • अपहरण विवाह- इस विवाह में युवक लड़की को भगाता है और विवाह करता है. इसलिए इस विवाह को अपहरण विवाह भी कहा जाता है. यह विवाह बस्तर के गोंड जनजातियों में सबसे ज्यादा प्रचलित है.
  • पैठुल विवाह- इस विवाह में लड़की लड़के के घर पर आकर रुक जाती है. परिवार के सदस्य भी प्रवेश से नहीं रोक पाते हैं तो परिवार के सदस्य मजबूर हो जाते हैं और उनकी शादी करा देते हैं. कोरवा और अगरिया जनजाति में इसे ढूकू और बैगा जनजाति में पैढू या पैठुल कहा जाता है.
  • गुरावट विवाह- इस विवाह में दो परिवारों की लड़कियों को दूसरे परिवार के लड़कों के लिए दुल्हन के रूप में स्वीकार किया जाता है. इसे विनिमय विवाह के रूप में भी जाना जाता है. यह एकमात्र विवाह है जो छत्तीसगढ़ के गैर-आदिवासी परिवारों में ज्यादा मान्य है. बिरहोर जनजाति में इसे गोलट / टैटू विवाह भी कहा जाता है.
  • गंधर्व विवाह- इस विवाह में लड़की और लड़का एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करते हैं. इसे प्रेम विवाह भी कहा जाता है. यह विवाह परजा जनजाति के बीच सबसे ज्यादा प्रचलित है.
  • पोटा विवाह- इस शादी में विवाहित महिला एक अधिक समृद्ध व्यक्ति से शादी करके फिर से शादी कर लेती है और इसे पाटा विवाह कहा जाता है. यह विवाह कोरकू जनजाति और परजा (गोंड जनजाति की उपजाति) में ज्यादा प्रचलित है.
  • तीर विवाह- इस शादी में लड़की को एक योग्य वर नहीं मिल पाने पर तीर से शादी की जाती है. यह विवाह बिरहोर जनजाति में ज्यादा प्रचलित है.
  • पेंडुल विवाह- यह एक सामान्य विवाह है. बस्तर में इसे पेंडुल कहा जाता है. इसमें लड़का लड़की के घर बारात लेकर जाता है. यह मूल रूप से सभी जनजातियों में प्रचलित है.
  • भगेली विवाह-यह विवाह मडिय़ाद, गोंड जनजाति में सबसे लोकप्रिय है. इस शादी में लड़की जबरन लड़के के घर जाती है.
  • पेठोनी विवाह- इस विवाह में लड़की बारात लेकर लड़के के घर आती है. वहां मंडप में विवाह संपन्न होता है.
  • पेठु या लिव इन रिलेशनशिप- छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासियों के बीच काफी लोकप्रिय है. कई जोड़े अपने बच्चों के जन्म के बाद शादी करते हैं. यहां तक ​​कि पैदा हुए बच्चे भी समाज द्वारा स्वीकार किए जाते हैं.

19 मई 2003 को 22 साल के वन कुमार ने नगरनार गांव में औपचारिक रूप से रचमावती से शादी की. उनकी 2 साल की बेटी धनवंती समारोह की गवाह बनी. वन कुमार ने कहा कि वे पिछले तीन साल से साथ रह रहे थे. वन कुमार और रचनावती दोनों जगदलपुर के संभागीय मुख्यालय से 20 किमी दूर कुताबदन गांव के हैं. वन कुमार ने कहा कि जब वह एक स्थानीय बाजार से रचनावती को अपने घर ले गए थे तो उन्होंने 800 रुपये 'महाला' के रूप में दिए थे. महाला वह राशि है जो लड़के द्वारा लड़की के माता-पिता को दी जाती है)

उधलका विवाह

उधलका विवाह या अपहरण के बाद शादी बीजापुर, फरसगांव और नारायणपुर ब्लॉकों में गोंड और मुरिया जनजातियों में समान रूप से लोकप्रिय है. कोई भी युवा किसी लड़की की बाहों को सार्वजनिक स्थान पर पकड़ सकता है. आमतौर पर साप्ताहिक हाट, मडियां या त्योहारों पर. यदि लड़की आपत्ति नहीं करती है तो लड़का उसे अपने घर ले जाता है और समाज को उधलका विवाह के बारे में सूचित करता है. अगले दिन वह लड़की के घर जाता है और माता-पिता को महाला देता है, जिसमें पैसे, शराब, बकरी, बैल या सूअर शामिल हो सकते हैं. लड़के और लड़कियां एक हफ्ते प्री-हनीमून शिविरों में एक साथ बिताते हैं और अपने रिश्ते को औपचारिक रूप देने से पहले अपने सहयोगियों के आदी हो जाते हैं.

भतरा, डोरला और महला आदिवासी इस विवाह को पसंद करते हैं. हालांकि समस्याएं तब पैदा होती हैं जब एक लड़का जनजाति की एक अन्य उप-जाति की लड़की के साथ ऐसा विवाह करता है. लोहांडीगुड़ा जनपद पंचायत के बोंझा राम को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उनके बेटे सत्यनारायण (एक माडिया आदिवासी) ने साप्ताहिक हाट में एक मुरिया आदिवासी लड़की का अपहरण कर लिया था. लड़के और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया. क्योंकि आदिवासी अंतर-उप-जाति संबंधों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं.

आदिवासियों पर थोपे जा रहे अलग-अलग धर्म!

आदिवासियों पर अलग-अलग धर्म थोपे जा रहे हैं. हाल के दशकों में हिंदू धर्म थोपने के प्रयासों में तेजी भी देखी गई है. आदिवासियों को विभिन्न तरीकों से हिंदू धर्मावलंबी बताए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इन सबके बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने फैसला लिया है कि आदिवासी युगलों की शादी हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक नहीं बल्कि उनकी अपनी परंपराओं के अनुसार हो.

इस आशय का एक पत्र महिला एवं बाल विकास विभाग को 18 जून 2020 को जारी किया गया है. इसके जरिए सूबे के सभी जिलों के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी और जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत जनजातियों का विवाह फार्म भरते समय हिंदू न लिखा जाए.

Last Updated : Jan 8, 2021, 6:21 PM IST

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