रायपुर/ भोपाल:द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ केशंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी को मणिदीप आश्रम से गंगा कुंड स्थल पालकी पे सवार कर भक्तों द्वारा ले जाया जा रहा है. जहां पर सभी भक्तजनों उनके दर्शन करेंगे. भारी संख्या में यहां श्रद्धालु मौजूद हैं. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक महाराज श्री जी को समाधि दी जाएगी. भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन से छत्तीसगढ़ में शोक की लहर: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में शोक की लहर है. राजनेताओं के साथ साथ कई धर्मगुरुओं की तरफ से शोक और संवेदना प्रकट की जा रही है. सीएम भूपेश बघेल और पूर्व सीएम रमन सिंह ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को श्रद्धांजलि अर्पित की है. पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने कहा कि " स्वामी स्वरूपानंद महाराज का कवर्धा के लोग के प्रति विशेष प्रेम रहा. हमें व्यक्तिगत तौर पर यह महसूस हो रहा है कि हमारे परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य आज हमारे बीच नहीं रहे. ईश्वर से मैं प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें. शंकराचार्य जी का कवर्धा से काफी लगाव था.उन्होंने करपात्री महाराज से शिक्षा ली थी इसलिए वह कवर्धा से विशेष लगाव रखते थे. "
सीएम भूपेश बघेल ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को किया नमन:सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि" पूज्य जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देवलोकगमन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। ऐसे महान संत पृथ्वी को आलोकित करते हैं. उनके श्रीचरणों में बैठकर आध्यात्म का ज्ञान और आशीर्वाद के क्षण सदैव याद आएँगे। ॐ शांति".
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का जीवन परिचय:शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और मां नाम गिरिजा देवी था. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.
ये भी पढ़ें:आजादी की लड़ाई से लेकर राम मंदिर निर्माण में योगदान देने वाले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन
क्रांतिकारी साधु के तौर पर प्रसिद्ध हुए थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती :1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी. वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड संन्यास की दीक्षा ली. इसके बाद वह स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम से जाने जाने लगे. 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली. (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati passed away)
दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती:हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत की चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां ( गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ ) बनाईं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों ( द्वारका एवं ज्योतिर्मठ ) के शंकराचार्य हैं. शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है. हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं. (Swaroopanand Saraswati Death)