रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (Division Bench of Chhattisgarh High Court) ने सोमवार को अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में 58 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब छत्तीसगढ़ के राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.
आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति भूपेश सरकार ने जानबूझकर हारा मुकदमा: हाई कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने सरकार पर हमला बोला है. भाजपा प्रदेश सह प्रभारी नितिन नवीन (BJP state co-in-charge Nitin Naveen) ने कांग्रेस सरकार पर बड़ा आरोप लगाया. नितिन नवीन ने कहा कि "कांग्रेस की सरकार जानबूझकर केस हारी है. बीजेपी ने तो आदिवासियों को आरक्षण दिया था. जनजाति समाज के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने आरक्षण के माध्यम से एक सुविधा देने की कोशिश की थी. कांग्रेस सरकार ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर जानबूझकर पीआईएल दाखिल कराया था और बाद में पीआईएल दाखिल करने वालों को पुरस्कृत भी किया. कांग्रेस पार्टी कभी एसी एसटी पर राजनीति करती है तो कभी ओबीसी पर. अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ऐसा काम कर रहे हैं. कांग्रेस के नेताओं को यह बताना चाहिए कि क्या वजह है कि जनता की पीठ पर लगातार छुरा घोंपने का काम किया जा रहा है."
यह भी पढ़ें:शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा, नितिन नवीन ने बघेल सरकार पर बोला हमला
आरक्षण के जायज कारणों को नहीं किया था रमन सरकार ने प्रस्तुत: नितिन नवीन के आरोप पर कांग्रेस ने पलटवार किया है. कांग्रेस प्रदेश संचार विभाग सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि " भाजपा के सह प्रभारी नितिन नवीन को हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन करना चाहिए, तब उन्हें शर्मिंदगी का अहसास होगा कि उनकी सरकार ने आरक्षण देने के बाद जो प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार आरक्षण 50% से अधिक करने के जायज कारणों को कोर्ट में प्रस्तुत करना था. जायज कारण उपलब्ध थे लेकिन रमन सरकार ने दुर्भावनावश आरक्षण रद्द हो गया है. इसलिए समय पर उन कारणों को प्रस्तुत नहीं किया.
ननकीराम कंवर की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय समिति बनाई गई थी. उनकी फाइंडिंग को भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया था. शपथ पत्र में भी इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया था. हमारी सरकार आने के बाद इन सारी चीजों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई तो हाईकोर्ट ने कहा कि शपथ पत्र में मंत्रिमंडलीय समिति का कोई उल्लेख नहीं है. जिसके कारण यह मुकदमा सरकार हार गई. इसके लिए अगर कोई दोषी है तो वह रमन सिंह है. नितिन नवीन को अपनी पुरानी सरकार के इस गलती के लिए छत्तीसगढ़ की जनता से हाथ जोड़कर माफी मांगनी चाहिए. उनके साथ भारतीय जनता पार्टी ने धोखा किया था."
संविधान बनेगा सबसे बड़ा रोड़ा: आरक्षण पर हाई कोर्ट से फैसला आने के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. इस मामले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मामले को लेकर संविधान सबसे बड़ा रोड़ा है. 1992 में इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि भारत के किसी भी राज्य में तमिलनाडु को छोड़कर आरक्षण का प्रतिशत 50 से अधिक नहीं हो सकता.1992 से 2022 इन 30 वर्षों में राजस्थान, तेलंगाना, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश बहुत से राज्यों ने आरक्षण के प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश की.
हर बार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने 50% से अधिक आरक्षण को खारिज किया. क्योंकि इंदिरा साहनी केस के फैसले के खिलाफ है. तमिलनाडु में अभी भी आरक्षण का प्रतिशत 69% है. जो 50% से ज्यादा है. इस बात का उदाहरण देकर बहुत से राज्य उसी दिशा में जाने की कोशिश करते हैं. लेकिन भारत में जब 1950 में आरक्षण पद्धति लागू हुई. उसके पहले ही भारत के स्वतंत्रता के पहले ही तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण पद्धति लागू थी. इसलिए जब इंदिरा साहनी केस लागू हुआ, तब तमिलनाडु को विशेष राज्य मानते हुए. वहां की विधानसभा में उसे पारित किया और संविधान की नौवीं सूची डाल दिया गया है.
चुकी नौवीं सूची में डालने के कारण उसे सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दे सकते. इसलिए तमिलनाडु है कि स्पेशल स्टेट है और उसका देखा देखी बाकी दूसरा राज्य उसका अनुसरण नहीं कर सकता. अब आने वाले दिनों में केवल राजनीति होनी है. क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक है. इसके लिए आरोप-प्रत्यारोप होगा. आगे सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और सुप्रीम कोर्ट में यह केस नहीं टिक पाएगा. इस बीच में अगर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार पूरी राजनीति बिरादरी अगर कोई रास्ता निकालें तो इसका कोई समाधान निकल सकता है."
आरक्षण में हुआ था संशोधन: छत्तीसगढ़ में 2012 से पहले अनुसूचित जन जाति का आरक्षण 20 प्रतिशत, अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत था. राज्य सरकार ने साल 2012 में आरक्षण नियमों को संशोधित करते हुए अनुसूची जाति वर्ग का आरक्षण 4 प्रतिशत 12 प्रतिशत कर दिया और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 32% कर दिया था. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% यथावत रखा था.