रायपुर : राजधानी रायपुर में ऐसे कई स्मारक और स्कूल है जो अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए थे. राजकुमार कॉलेज , जयंत पांडे स्कूल , सप्रे शाला ये सभी अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए स्कूल हैं.इन्होंने अंग्रेजो के जुल्मों को देखा है. इन स्कूलों की पुरानी दीवारों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और नामचीन हस्तियों की कहानियां बसी हैं. स्कूलों की दीवारों में आज भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गाथाओं को संभाल कर रखा है. ईटीवी भारत आज आपको ऐसे ही एक माधवराव सप्रे स्कूल के बारे में बताने जा रहा है. जिसे 1913 में बनाया गया (places of Raipur where the memories of the freedom struggle reside ) था.
कई स्वतंत्रता सेनानी माधव सप्रे शाला से पढ़कर निकले :इतिहासकार डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि " सप्रे विद्यालय की स्थापना 1913 में हुई थी. पहले उसे लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद माधवराव सप्रे के नाम से इस स्कूल को जाना जाता है. सप्रे स्कूल न सिर्फ आजादी का केंद्र था. बल्कि ना सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पढ़कर निकले, बल्कि राजनेता और अधिकारी भी निकले हैं. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में गोपालप्रसाद यदु, नारायण दास राठौर, डॉ. महादेव प्रसाद पाण्डेय, लीलाधर जमुने, काकेश्वर बघेल आदि यहीं से पढ़कर निकले. नेताओं में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव रमाशंकर नायक, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, पूर्व केंद्रीय मंत्री पं. विद्याचरण शुक्ल, त्रिपुरा के नवनियुक्त राज्यपाल रमेश बैस यहीं से पढ़े हैं. मैंने खुद वहां पर पढ़ाई की है."
सप्रे शाला मैदान में गांधी नेहरु ने ली थीं सभाएं :इतिहासकार डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया " सप्रे शाला मैदान में गांधी, नेहरू और अंबेडकर ने कई सभाएं की थी. आरएसएस की परेड इसी मैदान में होती थी. रायपुर का प्रमुख मैदान होने से यहीं पर अंग्रेजों के जमाने में आरएसएस का परेड हुआ करता था. इसके अलावा बड़े नेताओं की सभाएं इसी जगह हुआ करती थी. क्योंकि अंग्रेज विद्यालयों में नहीं जाते थे, इसलिए सभाओं के लिए इसे ही उपयोग किया जाता था. "