रायपुर : छत्तीसगढ़ के कप्तान बदलने को लेकर लगातार सियासत गरमाई हुई है. जिस तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले दिनों दिल्ली गए फिर दिल्ली से वापस रायपुर आए. उसके बाद फिर से दिल्ली गए उनके जाने के पहले और जाने के बाद भी एक के बाद एक मंत्री-विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का दिल्ली जाने का क्रम जारी रहा. इससे यह साफ जाहिर होता है कि पार्टी में कहीं न कहीं कप्तान बदलने को लेकर चर्चा जरूर है. यही कारण है कि टीएस सिंहदेव दिल्ली में लंबे समय तक जमे रहे और भूपेश बघेल भी दल-बल के साथ दिल्ली पहुंचे. बाद में उसी दल-बल के साथ वापस रायपुर भी आए.
राजनीतिक एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय इसके बाद इस मामले को लेकर राजनीतिक एक्सपर्ट की अलग-अलग राय सामने आ रही है. एक ओर जहां कुछ का कहना है कि हाईकमान ने वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए कप्तान बदलने की संभावनाओं को विराम दे दिया है. तो कुछ अभी भी यह संकेत दे रहे हैं कि प्रदेश में बड़ा बदलाव हो सकता है.
भूपेश बघेल हुए हैं मजबूत
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति में भूपेश बघेल का दिल्ली जाना और जिस तरह से सभी उनके साथ दिखे, इससे लगता है कि भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की राजनीति में और मजबूत हुए हैं. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में जो स्थिति बनी है, उसमें प्रदेश में भूपेश बघेल सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं. उनकी मजबूती के कई कारण हैं. वे पिछड़े वर्ग से आते हैं. जुझारू हैं. भाजपा के दिग्गज माने जाने वाले मोदी और अमित शाह के खिलाफ खुलकर बयान देते हैं.
वर्तमान परिस्थिति को देखते हाईकमान ने निर्णय लिया वापस
भाजपा में आज की स्थिति में भूपेश बघेल के कद का ऐसा कोई नेता नहीं है, जो छत्तीसगढ़िया हो. पिछड़ा वर्ग का और आक्रामक शैली का हो. कड़े फैसले लेने की क्षमता रखता हो. प्रशासनिक अमले में कसावट ला पाने में भी सक्षम हो. यही चीजें भूपेश बघेल को दूसरे नेताओं से अलग कर रही हैं. यही कारण रहा हो कि हाईकमान को ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले का अपना फैसला वापस लेना पड़ा हो.
बाबा की ताजपोशी की संभावना दिख रही कम
रामअवतार तिवारी ने कहा कि आज बाबा की ताजपोशी की संभावना कम दिख रही है. उसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि बघेल ने कांग्रेस को एकजुट कर एक मंच पर लाया है. हाईकमान को दिखाने की कोशिश की है कि यहां कांग्रेस मजबूत हुई है. आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ने को भी कांग्रेस तैयार है.
उन्होंने कहा कि यदि सिंहदेव की बात की जाए तो उनके लिए वर्तमान में जिस विभाग में वे मंत्री हैं, वहां बने रहने के अलावा पार्टी संगठन में जगह दी सकती है. क्योंकि टीएस सिंहदेव सौम्य और मिलनसार हैं. सबको साथ लेकर चलने वाले हैं. वे जिस रियासत और परिवार से आते हैं, उसका महत्व कांग्रेस के अंदर और बाहर दोनों जगह है. बाबा का सरगुजा क्षेत्र में प्रभाव अधिक है. भविष्य में कांग्रेस को इसका फायदा लेने की रणनीति बनाने की जरूरत है.
वर्तमान परिस्थिति का पार्टी पर पड़ा है बुरा प्रभाव
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि पिछले दिनों जो समीकरण पार्टी में देखने को मिले, इसका प्रभाव कहीं न कहीं पार्टी के अंदर पड़ने वाला है. क्योंकि कांग्रेस पहले से ही गुटबाजी के लिए चर्चित है. कांग्रेस की सबसे बड़ी दुश्मन कोई अन्य राजनीतिक दल नहीं, बल्कि खुद कांग्रेस है. यह सभी जानते हैं. बावजूद इसके कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने सभी को संगठित करके रखा. उनका यह परिश्रम इस घटना के बाद बिखर गया. एक बार फिर से कांग्रेस की वही छवि दोबारा जनता के बीच बन गई है.
शशांक ने कहा कि साल 2018 में चुनाव जीतने के बाद ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला आया. उस समय पार्टी द्वारा तात्कालिक परिस्थिति को देखते हुए यह फार्मूला निकाला गया. लेकिन आज वही फॉर्मूला पार्टी के गले की हड्डी बन चुका है. यदि हाईकमान द्वारा उसी समय का निर्णय ले लिया गया होता है, तो आज ऐसी परिस्थिति निर्मित नहीं होती.
भाजपा को मिलेगा फायदा यह नहीं है जरूरी
शशांक ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को लाभ की बात की जाए तो वर्तमान में दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत कांग्रेस के पास है. यदि कांग्रेस को 25 सीट का नुकसान भी होता है तो भी उसके पास पर्याप्त बहुमत होगा. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि वर्तमान परिस्थिति का फायदा आने वाले समय में भाजपा को मिल सकता है. वर्तमान में प्रकरण के समाप्त होने को लेकर शशांक ने कहा कि राजनीति की पुस्तक में कोई आखिरी पन्ना नहीं होता. हमेशा संभावनाएं बनी रहती हैं. इस मामले में भी अभी पिक्चर बाकी है.