कोरबा:विशेष पिछड़ी जनजाति व राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा समुदाय की सुनी बाई कोरवा नाम की महिला की निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल में मौत के बाद हड़कंप मचा है. 56 वर्षीय सुनी बाई ग्राम पंचायत सतरेंगा की निवासी थी. इस महिला को मेडिकल कॉलेज अस्पताल से निजी अस्पताल भेज दिया गया था. हाथ के फ्रैक्चर के लिए ऑपरेशन के नाम पर महिला को 3 दिन तक भूखे प्यासे रखा गया. आखिरकार महिला ने दम तोड़ दिया. महिला की मौत के बाद रेफरल रैकेट में शामिल 3 अस्थायी वार्डबॉय को बर्खास्त कर दिया गया है. निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल को सील कर दिया गया है. वहीं एक अन्य महिला राजकुमारी महंत की भी जिला अस्पताल में मौत हुई है. राजकुमारी महंत को निजी अस्पातल से मरणासन्न स्थिति में सरकारी अस्पताल भेज दिया गया था. इस मामले में निजी अस्पताल का संचालन करने वाली सरकार डॉक्टर कुजूर को नोटिस जारी करने की तैयारी की जा रही है.
समझिये किस तरह काम करता है रेफरल रैकेट
निजी अस्पताल और डॉक्टर कम समय में ही अकूत संपत्ति बना लेते हैं. वे अपने एजेंट नियुक्त करते हैं. ये एजेंट सरकारी अस्पतालों के आसपास मौजूद रहते हैं. जैसे ही कोई जरूरतमंद मरीज सरकारी अस्पताल पहुंचता है, निजी अस्पताल के एजेंट उन्हें सस्ता और अच्छा इलाज का प्रलोभन लेकर सरकारी अस्पतालों में घटिया इलाज का भय दिखाते हैं. इस काम के लिए सरकारी अस्पतालों के वार्ड बॉय, सार्वजनिक परिवहन में लगे ऑटो चालकों से लेकर सरकारी चिकित्सक शामिल रहते हैं. सभी का कमीशन तय होता है. सरकारी अस्पताल से जिस मरीज को भी निजी अस्पताल में शिफ्ट किया जाता है, उसका अनाप-शनाप इलाज कर गैरजरूरी दवाइयां देकर पैसे ऐंठे जाते हैं. जिससे रैकेट में शामिल सभी लोगों को कमीशन मिलता है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा हो या फिर अन्य सरकारी अस्पताल सभी सरकारी चिकित्सकों के कहीं ना कहीं निजी चिकित्सालय मौजूद हैं. या फिर वह किसी निजी चिकित्सालय में अपनी सेवाएं देते हैं. ऐसे सरकारी डॉक्टर भी सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को निजी अस्पताल में आने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि वहां बेहतर इलाज मिलेगा. इस तरह वह मरीजों से अनैतिक कमाई करते हैं.
3 वर्ष में 3112 महिलाओं की मौत
जनजातीय मंत्रालय ने यह जानकारी दी है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों में बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, कांकेर, कोंडागांव, कोरबा, कोरिया, नारायणपुर, सुकमा, सूरजपुर और सरगुजा शामिल हैं. यहां 3 वर्षों में किसी न किसी बीमारी की वजह से 3 हजार112 जनजातीय महिलाओं की मौत हुई है. जबकि 955 गर्भवती महिलाओं ने दम तोड़ दिया है. यह आंकड़े डराने वाले हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं की वनांचल क्षेत्र में क्या स्थिति है. इन आंकड़ों से यह भली-भांति पता चलता है.
अकेले दंतेवाड़ा में 17 सौ से अधिक मौत
प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में जनजाति महिलाओं की मौत के मामले में दंतेवाड़ा में स्थिति सबसे खराब है. अकेले दंतेवाड़ा जिले में 1753 महिलाओं ने बीते 3 साल में दम तोड़ दिया है, जबकि सूरजपुर, कोंडागांव, कांकेर जैसे जिलों में भी स्थिति ठीक नहीं है.
यह भी पढे:गीता देवी मेमोरियल अस्पताल सील हुआ तो आदिवासियों की आवाज बनने पर लोगों ने ETV Bharat को कहा धन्यवाद
अकेले कोरबा में 3 साल में 103 महिलाओं की मौत
बीते 3 साल में कोरबा जिला में 103 आदिवासी समुदाय से आने वाली महिलाओं की मौत हुई है. सेप्सिस और गर्भपात के दौरान महिलाओं की मौत हुई है. ज्यादातर मौतें तब हुई हैं, जब उनका इलाज निजी अस्पतालों में रेफर कर किया गया था. जितनी भी मौतें सरकारी से निजी अस्पतालों में रेफर के दौरान हुई हैं, इन सभी में रेफरल रैकेट के संलिप्तता की पूरी संभावना है.