कोरबा:कोरोना काल में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय काफी प्रभावित हुआ था. ट्रांसपोर्ट सेक्टर धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ही रहा था कि दोबारा कोरोना वायरस का संक्रमण छत्तीसगढ़ में तेजी से फैल रहा है. इस बार कोरोना की रफ्तार तेज है. ऐसे में कई जिलों में नाइट कर्फ्यू लागू किए गए हैं. इसके अलावा कई इलाकों में धारा 144 भी लागू कर दी गई है. हालातों में हुए बदलाव से ट्रक ड्राइवरों और ट्रक मालिकों को परेशानी में डाल दिया है.
लॉकडाउन से प्रभावित हो रहा ट्रांसपोर्ट सेक्टर एक साल पहले हुए लॉकडाउन ने ट्रांसपोर्ट के पहिए भी थाम दिए थे. लॉकडाउन के बाद से इस सेक्टर में मैन पावर की भारी कमी दिखने लगी है. फिलहाल ट्रांसपोर्टर परेशान हैं. अलग-अलग ट्रक मालिकों से बात करने पर पता चला कि इस क्षेत्र में व्याप्त जोखिम को झेलने के लिए युवा वर्ग तैयार भी नहीं है. नए ट्रक ड्राइवर भी बेहद मुश्किल से तैयार हो रहे हैं. जो पुराने हैं वही इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं. ETV भारत ने इस पर विशेष रिपोर्ट तैयार की है.
जिले में 15000 ट्रकों का आवागमन हर रोज
प्रदेश की ऊर्जा धानी होने के कारण कोरबा जिले में प्रतिदिन कोयला और अन्य गुड्स की ट्रांसपोर्ट में लगे वाहनों का बड़े पैमाने पर आना-जाना होता है. ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन जिले में लगभग 15000 ट्रक होकर गुजरते हैं. अधिकांश की मरम्मत ट्रांसपोर्ट नगर में होती है. इससे एक बड़ा वर्ग अपनी आजीविका का प्रबंध करता है. लेकिन वर्तमान हालात ने इस सेक्टर को बड़ा नुकसान पहुंचाया है.
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50,000 से अधिक लोगों की आजीविका का प्रबंध
ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से ट्रक ड्राइवर से लेकर ट्रक मालिकों तक 50,000 से अधिक लोगों की आजीविका चलती है. एक ट्रांसपोर्ट कंपनी बंद होने का मतलब होता है कि उससे जुड़े कई लोगों की रोजी-रोटी छिन रही है. कोरोना काल में कई छोटे ट्रांसपोर्टरों ने यह व्यवसाय छोड़ दिया है. किस्तें नहीं चुका पाने के कारण ट्रांसपोर्टरों की गाड़ियां भी फाइनेंस कंपनियां खींच कर वापस ले गए हैं.
जोखिम अधिक इसलिए तैयार नहीं हो रहा है नए ड्राइवर
ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय ड्राइवरों पर निर्भर होता है. ड्राइवर ही एक समान को एक राज्य से दूसरे राज्य तक सुरक्षित तरीके से पहुंचा कर उसका परिवहन करता है. इस दौरान उन्हें तय समय सीमा में गुड्स का परिवहन करना होता है. खराब सड़क से लेकर नींद पूरी ना होना और अनियमित दिनचर्या से भी ट्रक ड्राइवरों को जूझना पड़ता है. सड़क दुर्घटनाओं से लेकर कई तरह के जोखिम होते हैं.
अब नए ट्रक ड्राइवर बेहद मुश्किल से तैयार हो रहे हैं. इससे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय बेहद बुरे दौर से गुजर रहा है. कोरोना काल के बाद से फैक्ट्रियों में ड्राइवर के साथ हेल्पर का जाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. हेल्पर का कल्चर अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. पहले ड्राइवर के सानिध्य में रहकर हेल्पर ड्राइविंग सीख लेते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है. ट्रक ड्राइविंग सिखाने के लिए ड्राइविंग स्कूलों की संख्या भी बेहद सीमित है. छोटी संस्थाएं काम जरूर कर रहीं हैं, लेकिन उनके परिणाम संतोषजनक नहीं है.
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डीजल के दाम बढ़ने से बढ़ा बोझ
ट्रक मालिक कहते हैं कि मैनपावर की कमी के साथ ही बढ़ते खर्चों ने भी उनकी हालत पतली कर दी है. डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. टोल प्लाजा भी शुरू कर दिया गया है. इससे उन्हें प्रत्येक फेरे में भारी नुकसान भी हो रहा है. उनका मुनाफा बेहद कम हो गया है. लेकिन भाड़ा उतनी तेजी से नहीं बढा जितना कि बढ़ाया जाना चाहिए. इससे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.