कोरबा: कोरोना काल में रेलवे ने माल ढुलाई करने की दिशा में कीर्तिमान स्थापित किया. कोयले से लदी ट्रेनों की संख्या कोरोना के पहले हर दिन औसतन 30 से 35 थी. अब यह बढ़कर 40 से 45 हो गई है. रेलवे को अकेले कोरबा से करीब 6 हजार करोड़ रुपये का राजस्व सालाना, माल ढुलाई से मिलता था. अब इसमें इजाफा हो जाएगा. माल ढुलाई में जहां कीर्तिमान स्थापित किए जा रहे हैं, वहीं यात्री सुविधाओं के मामले में कोरबा को लगातार ठगा जा रहा है. पहले कोरबा से 17 यात्री ट्रेनों का परिचालन होता था. वर्तमान में इसे घटाकर केवल 4 कर दिया गया है. कोरबा से रायपुर कनेक्टिविटी के लिए जोर-शोर से शुरू किए गए हसदेव एक्सप्रेस को भी अब पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.
कोरबा में घटी यात्री ट्रेनों की संख्या बंद हुई हसदेव एक्सप्रेस
लोकल और एक्सप्रेस ट्रेनों को मिलाकर कोरोना के पहले कोरबा से 17 यात्री ट्रेनों का परिचालन किया जाता था. इनमें से कुछ साप्ताहिक भी थी. लेकिन वर्तमान में सुबह-शाम 1-1 लोकल और लिंक एक्सप्रेस का ही परिचालन हो रहा है. जबकि हसदेव एक्सप्रेस सहित सप्ताहिक चलने वाली वेनगंगा और त्रिवेंद्रम सहित गेवरा-नागपुर एक्सप्रेस को भी बंद कर दिया गया है.
एक्सप्रेस ट्रेन चलाने की मांग
छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का परिचालन जरूर हो रहा है, लेकिन इसे कोरबा से बिलासपुर तक लोकल और बिलासपुर से एक्सप्रेस बनाकर भेजा जाता है. जबकि कोरबा से ही इसे एक्सप्रेस ट्रेन बनाकर चलाने की मांग बहुत पहले से की जा रही है. इस पर भी कोई अमल नहीं हो रहा है. इस पर लोगों का कहना है कि कोरोना को बहाना बनाकर यात्री ट्रेनों का परिचालन लगातार बंद किया जा रहा है. ताकि कोरबा से निर्बाध रूप से ज्यादा से ज्यादा कोयले की ढुलाई की जा सके.
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40 से 45 मालगाड़ियों का होता है परिचालन
कोरबा की जनता में आम धारणा ये है कि यदि आंधी तूफान दिल्ली में आए तो कोरबा की यात्री ट्रेनों को सबसे पहले बंद कर दिया जाता है. कोरबा से हर दिन 40 से 45 रैक कोयले की ढुलाई होती है. यहां से कोयले की ढुलाई छत्तीसगढ़ ,बल्कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों के लिए रवाना किया जाता है. एक रैक में 59 बोगी होती है. प्रति रैक में 5 हजार 300 टन कोयला धारण करने की क्षमता होती है. तो इस तरह हर दिन 5 हजार 300 टन वाली 40 से 45 मालगाड़ियों का परिचालन कोरबा से होता है.
हर 10 मिनट में बंद होता है फाटक
कोरबा की समस्या केवल यात्री ट्रेन को बंद किया जाना नहीं है. कोरबा फाटकों का शहर है. गेवरा और कुसमुंडा से लेकर सर्वमंगला चौक, मानिकपुर के बाद शारदा विहार, टीपी नगर और CSEB चौक, इन स्थानों पर शहर के प्रमुख चौराहे हैं. रेल लाइन शहर को दो भागों में बांटती है. यह सभी फाटक अमूमन हर 10 मिनट में बंद होते हैं. 24 घंटे में 40 से 45 माल गाड़ियां यहां से गुजरती हैं. जबकि इससे भी ज्यादा तादाद में खाली बोगियां वापस भी आती है. ये भी कोरबा के लिए एक बड़ी परेशानी है. फाटक बंद होने से पूरा शहर जैसे थम जाता है. बेतरतीब ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए भी कोई ठोस प्रयास नहीं होता. इससे निजात दिलाने के लिए सालों से ओवरब्रिज और अंडरब्रिज की परियोजनाएं केवल कागजों में ही चल रही हैं.
सांसद ने सुविधा बढ़ने की उम्मीद जताई
यात्री ट्रेनों के परिचालन की मांग को लेकर कोरबा में समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं. कोरबा को छोड़कर अन्य स्थानों पर यात्री ट्रेनों के परिचालन को लगातार शुरू किया जा रहा है. लेकिन कोरबा में यात्री ट्रेनें अभी शुरू नहीं हुई हैं. हाल ही में कोरबा के प्रवास पर आईं सांसद ज्योत्सना महंत ने कहा था कि कोरबा में रेल सुविधाओं की बुरी हालत है. इसके लिए रेल मंत्री पीयूष गोयल से चर्चा भी हो रही है. उम्मीद है जल्द ही सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी.