कवर्धा: सरकार सुदूर ग्रामीण इलाकों तक विकास की रोशनी पहुंचा देने को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है. लेकिन छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले Kawardha District in chhattisgarh) में जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी जिले के इस गांव में सड़क तक नहीं बन पाई है. स्कूल तो है मगर एक ही रूम का भवन है. बिजली के खंबे तो जरूर हैं, लेकिन उसमें अब तक करंट नहीं पहुंचा है. अगर कोई यहां बीमार पड़ जाए तो उसे इलाज के लिए 20 किलोमीटर दूर ले जाना पड़ता. उसमें भी 10 किलोमीटर मरीज को खाट पर लिटा कर पहुंचाना पड़ता है. ऐसे में इस आदिवासी गांव के लोग बरसात के महीने गांव में कैद होकर जीवन गुजारते हैं. कोई बीमार पड़ गया तो भगवान का ही सहारा है.
विकास से कोसों दूर कवर्धा जिले का डेंगुरजाम गांव
कहते हैं विकास की सबसे बड़ी परिभाषा शिक्षा, अस्पताल, सड़क, बिजली और पानी होती है, लेकिन अगर ये सुविधाएं नहीं मिल रही हो तो गांव की तरक्की नामुनकिन है. हम बात कर रहे हैं कवर्धा जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर डेंगुरजाम गांव (dengurjam village in kawrdha) की. डेंगुरजाम पहुंचना आसान नहीं है. नेउर गांव से इस गांव तक 10 किलोमीटर तक कच्ची उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर इस गांव तक पहुंचना पड़ता है. इस 10 किलोमीटर की फासला तय करने के लिए कई नदी-नालों को पार कर ग्रामीण गांव पहुंचते हैं. बारिश के दौरान जब नाले उफान पर होते हैं तो ग्रामीण चार माह तक गांव में कैद होने को मजबूर हो जाते हैं, इस बीच गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो खाट के सहारे पगडंडी रास्तों से अस्पताल पहुंचाया जाता है.
विकास की राह देख रही 'मंत्री जी' के इलाके की सड़कें
गांव में आज तक नहीं पहुंची बिजली
डेंगुरजाम गांव में बिजली तो पहुंचा दी गई है, लेकिन ग्रामीणों के मकान में अब तक कनेक्शन नही पहुंचा है, जिसके कारण ग्रामीण चिमनी के सहारे जीवन यापन करने को मजबूर हैं. यही हाल शिक्षा का भी है. गांव में स्कूल तो है, पर भवन काफी जर्जर और एक ही रूम का है. जो कभी भी धराशायी हो सकता है, जहां मासूम बच्चे अपने जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करते हैं. पहली से पांचवी कक्षा तक इस प्राथमिक स्कूल में दो शिक्षक हैं. पर वे कभी आते हैं कभी नहीं आते, ऐसे में आदिवासी बच्चे कैसे पढ़े-कैसे बढ़ें ये बड़ा सवाल है.