कवर्धा: पंडरिया इलाके में आज भी ऐसे कई गांव हैं, जहां सरकारी योजनाओं का अभाव है. इन गावों में जो लोग रहते हैं, वो काम न करें, तो उन्हें खाना मयस्सर नहीं होता. रात भूखे ही सोना पड़ता है, जिनकी जीविका सिर्फ मजदूरी कर के चलती है, वो गरीबी रेखा परिवार में तो आते हैं, लेकिन न उनके पास राशनकार्ड होता है, न ही गैस सिलेंडर की सुविधाएं मिल पाई है. यहां पहले से ही दुखों का अंबार था अब कोरोना वायरस ने और दुखी कर दिया है.
हम बात कर रहे हैं पंडरिया के कुंडा गांव की. जहां सरकारी अफसरों की गलती के कारण एक परिवार के लोग खाने के एक-एक दाने को तरस रहे हैं. इस गरीब के हाथों पर जो फटा हुआ राशन कार्ड है, उसमें परिवार का नाम तो लिखा है, लेकिन उनके किस्मत में राशन नहीं लिखा है. बस इनके किस्मत में लाचारी लिखी है.
किस्मत में भूख की लकीर
परिवार ने बताया कि '3 साल पहले तक राशनकार्ड से राशन मिलता था, जो जीने के लिए कुछ सहारा देता था, लेकिन राशनकार्ड नवीनकरण के समय फिंगर प्रिंट नहीं लग पाया, जिसका खामियाजा परिवार तीन साल से झेल रहा है. परिवार वाले कहते हैं अगर ये काम करने न जाएं, तो खाना नसीब नहीं होता, लेकिन अब तो हालात ऐसे हो गए हैं, कि कोरोना वायरस ने मानों किस्मत में भूख की लकीर खींच दी हो.