जांजगीर-चांपा: जिले के चंद्रपुर में स्थित मां चंद्रहासिनी मंदिर प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक है. नवरात्रि में यहां प्रदेश और दूसरे राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लेकिन कोरोना और प्रशासन के सख्त निर्देश देवी दर्शन के आड़े आ रहा है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु बगैर देवी के मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पूजा अर्चना कर वापस लौट रहे हैं. पौराणिक काल से मान्यता है कि चंद्रहासिनी मंदिर में ही देवी सती का अधोदन्त (आधा दांत) गिरा था, यही कारण है कि इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है.
पूरे प्रदेश में प्रमुख देवी मंदिरों में प्रशासन के सख्त निर्देश ने नवरात्रि में श्रद्धालुओं का उत्साह फीका कर दिया है. क्योंकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिरों में भक्तों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है. यही कारण है कि जिले के चंद्रहासिनी मंदिर के भी द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए गए हैं. अभी मंदिर के अंदर विधि-विधान के साथ देवी की पूजा अर्चना की जा रही है.
चंद्रहासिनी मंदिर का पौराणिक इतिहास
मंदिर के मुख्य पुजारी आनंद कुमार मिश्रा ने बताया कि चंद्रहासिनी मंदिर ही वह स्थान है जहां पर रावण को तपस्या के बाद चंद्रहास खड्ग मिला था. यही कारण है कि इस मंदिर का नाम चंद्रहासिनी मंदिर पड़ गया और जगह का नाम चंद्रपुर. महानदी और मांड़ नदी के संगम में स्थित यह प्रयाग स्थान चंद्रपुर कहलाता है. छोटी सी पहाड़ी में स्थित इस मंदिर में माता का मंदिर है. जहां मां चंद्रहासिनी विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां माता सती का अधोदंत गिरा था, जिसके कारण इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है. चंद्रहासिनी मंदिर में 10 हजार से ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं. लेकिन कोविड 19 के चलते इस बार पहले से कम ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं.