गरियाबंद:देवभोग सिंचाई अनुविभाग में बहने वाली बरसाती तेल नदी में एनासर घाट पर 72 करोड़ और कोदोबेड़ा घाट में 19 करोड़ की लागत से जलप्लावन योजना तैयार किया गया. यह दोनों योजना प्रदेश भर में लागू इकलौती जलप्लावन योजना है. लेकिन दोनों योजना फैल हो चुकी है. आलम यह है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी किसानों को वह लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिन उद्देश्यों को लेकर इन सिंचाई योजनाओं को शुरू किया गया था. अब किसानों में आक्रोश व्याप्त है और अपने को बेबस बतला रहे हैं.
गरियाबंद में सिंचाई योजनाएं फेल आंध्र प्रदेश और यूपी के जलप्लावन योजना मॉडल पर देवभोग सिंचाई अनुविभाग में बने नहरों में जल कुम्भी और अरबी के पौधे उगे हुए है. इन नहरों के जरिए सालों से सिंचाई के लिए पानी ही नहीं गया है. नदी के बहते पानी के अलावा भीतरी जल स्रोत से जिस कूएं में पानी सिंचाई के लिए भरने का दावा किया गया. आज वह कुंआ रेत से पटा पड़ा है.
आलम यह है कि योजना के करीब मौजूद किसानों को भी अपने डीजल पंप के सहारे खेतों की प्यास बुझाना पड़ रहा है. शो पीस बन चुके नहर किनारे मौजूद किसानों की जब आस टूट गई तो कई किसान नहर किनारे ही अपने सोलर पम्प से सिंचाई करने लगे.
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इन दोनों योजनाओं से देवभोग और मैनपुर ब्लॉक के 34 गांव में 15 हजार एकड़ से भी ज्यादा खेतों को खरिफ सीजन में वर्षा के समय सिंचाई सुविधा दिलाने का दावा किया गया था. लेकिन सारे दावे कागजी साबित हुए. दरअसल जिन प्रदेशो में यह योजना सफल है. वहां बारहो मास तेज बहाव वाले बड़ी नदियों में इसे लागू किया गया है. छतीसगढ़ में इस योजना को बारिश पर निर्भर कम, बहाव वाले नदी में लागू कर सरकार के पैसे को पानी की तरह बहा कर किसानों को तो नहीं किंतु ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया गया.