बिलासपुर: 19वीं शताब्दी में फ्रांस में दृष्टिहीनों में एक ऐसा असामान्य व्यक्ति पैदा हुआ, जिसने एक अनोखा आविष्कार कर अंधेपन के शिकार लोगों की जिंदगी बदलकर रख दी.
वरदान से कम नहीं है यह प्रेस इस अनोखे शख्स का नाम था लुई ब्रेल और आज इसी महान वैज्ञानिक की जयंती है, जिसे पूरा विश्व ब्रेल लिपि दिवस के तौर पर मना रहा है. सन 1821 में आज ही के दिन फ्रांसीसी मूल के लुई ब्रेल ने महज 12 साल की उम्र में ब्रेल लिपि को इजाद दिया था.
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिफरा प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस मौजूद है. यह प्रेस पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत है और यहां ब्रेल पद्धति से तैयार तमाम तरह की पुस्तकें तैयार होती हैं. यह ब्रेल प्रेस जनवरी 1985 में स्थापित हुआ था और तब से अब तक लगातार दृष्टिबाधितों के लिए यह जरूरी किताबें छाप रहा है.
जरूरतमंदों को दी जाती हैं किताबें
इस ब्रेल प्रेस में अत्याधुनिक मशीनें लगी हैं, जिसमें दर्जनों कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं. इस प्रेस से प्रमुख रूप से पहली से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों की छपाई होती है. जिन्हें जरूरतमंद बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है.
कई तरह की छापी जाती हैं किताबें
इसके अलावा यहां कहानी आधारित पुस्तक, धार्मिक पुस्तकें और व्याकरण की किताबों की छपाई भी ब्रेल लिपि में होती है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में इनदिनों 200 से 250 ऐसे दृष्टि से दिव्यांग शिक्षक हैं, जो ब्रेल पद्धति के माध्यम से सामान्य छात्रों को पढ़ाई करा रहे हैं.
वरदान से कम नहीं है यह प्रेस
निश्चित रूप से बिलासपुर में मौजूद प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यह सभ्य समाज को एक अनूठा संदेश भी देता है कि, दृष्टिबाधित भी इस समाज के ही अंग है और उन्हें हमारे प्यार की जरूरत है.