बिलासपुर:कोरोना वैक्सीन आने के बाद उम्मीद थी कि होली के रंग फीके नहीं होंगे लेकिन संक्रमण की दूसरी लहर ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. छत्तीसगढ़ में होली पर बताशे की माला (हड़बा) को भगवान को चढ़ाने का रिवाज है. इसके अलावा इन बताशों को बच्चों को देने और एक-दूसरे को पहनाने की परंपरा है. लेकिन पहले परिस्थितियों की मार फिर कोविड-19 की सेकेंड वेव ने दुकानदारों के खाली हाथ कर दिया है. महंगाई और कारीगर की कमी का असर भी मालों के व्यापार पर पड़ा है. इस साल तो मानो इस देसी मिठाई का स्वाद ही फीका हो गया हो.
रंग-बिरंगे बताशों की माला रंग-बिरंगी बताशों की माला, बिलासपुर के गोलबाजार और शनिचरी क्षेत्र की कुछ दुकानों में आपको मिल जाएंगी. दुकानदारों का कहना है कि हड़बा बनाने में बहुत मेहनत लगती है. इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से कारीगर दूसरे राज्यों से नहीं आए हैं. खासतौर पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से आने वाले कारीगर ये माला बहुत कुशलता से बनाते थे. लेकिन इस बार छत्तीसगढ़ के कारीगरों ने ही ये माला बनाई है. दुकानदार कहते हैं कि कोरोना और लॉकडाउन ने इस व्यवसाय बहुत फीका कर दिया है. लोग घर से कम निकल रहे हैं. प्रतिबंध की वजह से बाजार भी सूना है.
बताशे की माला बेचते दुकानदार SPECIAL: कोरोना ने बजाया नगाड़ों का 'बैंड', नहीं आ रहे खरीदार
कुछ लोग अब भी रंग-बिरंगे बताशों की माला खरीदने बाजार पहुंचे. ETV भारत से ग्राहकों ने बताया कि वे सालों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. इसलिए इस साल भी इसे खरीदने आए हैं. खरीदारों ने कहा कि नई जनरेशन भले ही अब इन परंपराओं को नहीं निभाती लेकिन पुराने लोग इसे निभा रहे हैं.
आदिवासी महिलाओं से पांच स्टेप में जानिए हर्बल गुलाल बनाना
छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण को देखते हुए अधिकतर जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है. होली पर सार्वजनिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. बैन की वजह से खरीदारी कम हो गई है. ऐसे में बाजार से उम्मीद लगाए बैठे दुकानदारों को मायूसी हाथ लगी है. रंग-बिरंगे बताशों की माला के साथ-साथ गुलाल, पिचकारी और नगाड़ा बेचने वालों के चेहरे भी उतरे हुए हैं. पिछले सालों तक जो रौनक बाजारों में नजर आती थी, वो इस वर्ष गायब है.