छपराः 1990 के बाद कई बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन संयुक्त बिहार का पहला चीनी मिल जो सारण जिले के मढ़ौरा में स्थापित हुआ था, उसको आज तक चालू नहीं किया गया. हालांकि चुनाव के समय किसान को मुआवजा व मिल कर्मचारियों को बकाये राशि का भुगतान कराये जाने का आश्वासन जरूर दिया जाता है.
मढ़ौरा स्थित चीनी मिल मजदूर यूनियन के महामंत्री वकील प्रसाद ने बताया कि जब भी चुनाव का समय आता है, तो इसे चालू करने का आश्वासन दिया जाता है. साथ ही किसानों और मिल कर्मचारियों के बकाये राशि का भुगतान करने की बात की जाती है. चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल के नेता हों, सभी लोग इसे चालू करने की बात तो करते हैं लेकिन चुनाव के बाद किसी को चिंता नहीं होती.
लौट सकती है इसकी पहचान
चीनी मिल के मुद्दे को संसद में उठाया जाए तो कपड़ा मंत्रालय के अधीन आने वाले इस मिल को चालू किया जा सकता था. मिल की स्थिति दिन ब दिन जर्जर होती जा रही है. चोर इसके कलपुर्जे चोरी कर कमाने की फिराक में लगे रहते हैं. स्थानीय नेता चाहते तो इसे पुनर्जीवित कर फिर से इस अधौगिक नगरी की पहचान वापस ला सकते थे. लेकिन किसी भी राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसे अमलीजामा पहनाने में कोई प्रयास नहीं किया.
बयान देते वकील प्रसाद, महामंत्री , मजदूर यूनियन वोट लेने के लिए बनता है मुद्दा
मालूम हो संयुक्त बिहार जब पश्चिम बंगाल, उड़ीसा व बिहार एक राज्य था, तो उसी समय सारण जिले के मढ़ौरा स्थित चीनी मिल की स्थापना की गई थी. जिसकी मिठास की राज्य ही नहीं बल्कि देश व विदेशों में भी चर्चा की जाती थी. लेकिन अब इस अधौगिक नगरी का नाम विलुप्त हो गया है. शायद इस बार भी वोट लेने के लिए इस मिल के मुद्दे को उछाला जा सकता है.