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महिलाओं के लिए आजादी के क्या हैं असली मायने, जानें उन्हीं की जुबानी

दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की हैं. यूं तो आजादी को 7 दशक बीत चुके हैं. लेकिन, क्या हम असल मायनों में आजाद हैं? इस सवाल पर राजधानी की महिलाओं ने अपनी राय रखी.

महिलाओं ने बेबाकी से रखी अपनी राय

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Published : Aug 14, 2019, 10:28 PM IST

पटना: गुरुवार को पूरा देश आजादी की 73वीं वर्षगांठ मनाने वाला है. इसको लेकर महीने भर पहले से तैयारियां की जा रही हैं. सभी स्कूल, कॉलेजों और सरकारी विभागों में खास प्रबंध किए गए हैं. कई जगहों में तो एक दिन पहले से ही आजादी का जश्न मनाया जाने लगा है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की है. यूं तो आजादी को 7 दशक बीत चुके हैं. लेकिन, क्या हम असल मायनों में आजाद हैं? इस सवाल पर राजधानी की महिलाओं ने अपनी राय रखी. ईटीवी भारत संवाददाता ने महिलाओं और युवतियों से आजादी के मायने पूछे.

'बेटियां अब भी आजाद नहीं'
पटना की ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि हमें 73 साल पहले अंग्रेजों के चंगुल से आजादी तो मिली गई. लेकिन, उसके बाद हम धीरे-धीरे अन्य पराधीनताओं के शिकार हो गए. वर्तमान में देशवासी कई रुढ़िवादी सोच के शिकार हैं. महिलाएं आज भी स्वतंत्र नहीं है. उन्हें घर, परिवार, समाज की पुराने परंपराओं ने जकड़ रखा है.

'गरीबी, बेरोजगारी से आजादी असल आजादी होगी'
महिलाएं मानती हैं कि आज भी उन्हें बोलने की आजादी नहीं है. अपना जीवन अपने हिसाब से जीने की आजादी नहीं है. समाज बेटी-बेटा में फर्क करता है. बेटियों को घरवाले ही खुला नहीं छोड़ते. वहीं, कुछ महिलाएं यह भी कहती हैं कि देश में आजादी का मतलब गरीबी से आजादी, बेरोजगारी से आजादी, सभी को एक समान सुविधाओं की आजादी होने से है. लेकिन, वह आजादी नहीं मिल पाई है.

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