पटना : कोरोना वायरस नाम की बला देश के लिए नई है. लेकिन हर साल आने वाली मुसीबतें, वो ज्यो की त्यों हैं और इस बार भी सामने खड़ी हैं. बात करें बिहार की, तो गर्मी का मौसम आते ही बिहार के कई जिलों में जल संकट की स्थित गहरा जाती है. ऐसे में सरकार ने कई कदम तो उठाए हैं. लेकिन इस गर्मी भी वो नकाफी दिखाई दे रहे हैं.
यूं तो सीएम नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना के तहत 'हर घर नल जल' योजना लांच की गई है. इसके तहत पाइप लाइन तो बिछा दी गईं हैं लेकिन उनमें पानी नहीं आ रहा. ईटीवी भारत ने जल संकट को लेकर बिहार के कई जिलों के ताजा हालातों के बारे में जायजा लिया. पानी की किल्लत को लेकर बांका, भागलपुर, गया, कैमूर और मुंगेर के कई इलाकों से हमारे संवाददातों ने जो तस्वीरें भेजीं. वो सरकार की तमाम योजनाओं की जमीनी हकीकत बयां कर रही हैं.
ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट एक कुंआ, किस-किस की प्यास बुझाएगा
बांका जिले के कोरिया पंचायत की सीमा स्थित सिमरिया गांव में पानी की समस्या विकराल रूप ले चुकी है. यहां 600 लोगों की प्यास बुझाने के लिए सिर्फ एक कुंआ है. इसी एक कुंए पर आश्रित इस गांव के लोग मवेशियों से लेकर अपने घर तक का काम पूरा करते हैं. कुंए की स्थिति जर्जर हो चली है. वहीं, गांव में एक भी चापाकल नहीं है. गांव के लोग कहते हैं कि हर साल नेता-मंत्री सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं और हम इसी एक कुंए के सहारे अपनी प्यास बुझाते हैं.
भागलपुर नगर निगम कैसे बुझा रहा प्यास
गर्मी आते ही भागलपुर नगर निगम के 51 वार्डों में 25 से ज्यादा वार्ड पानी की समस्या से जूझते हैं. इसके चलते हर साल लोगों का विरोध भी निगम को झेलना पड़ता है. इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. वार्ड नंबर 42 गंगटी टोला में 1 हजार घरों के बीच सिर्फ एक हैंडपंप है. वहीं, कई वार्डों में लगाए गये प्याऊ सूख चुके हैं.
एक नजर भागलपुर नगर निगम पर
जिले के 16 प्रखंडों में 242 पंचायतें और 3 हजार 120 वार्ड हैं. गंगा में आई बाढ़ से 11 वार्ड कट गए. वहीं पीएचईडी विभाग के पास 1 हजार 784, तो पंचायती राज डिपार्टमेंट के पास 28 वार्ड हैं. इन सभी वार्डों में 'हर घर नल जल' योजना के तहत पानी की किल्लत को दूर करना था. प्रशासन की माने तो 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. लॉकडाउन के चलते काम अधूरा रह गया.
यहां गंगाजल से बुझाई जानी थी प्यास
बात करें गया की, तो नीतीश सरकार ने पाइप के जरिए गंगा के पानी को यहां पहुंचाने की बात कही थी. इसके लिए कई बार समीक्षा बैठकें भी हुईं. यहां हर घर पाइप लाइन तो पहुंच गई है. लेकिन उन पाइपों से पानी की एक बूंद तक नहीं गिरी. हालांकि, प्रशासनिक अधिकारियों का दावा है कि पानी की समस्या को दूर किया जा रहा है. जहां पानी चापाकल की मरम्मती नहीं हुई है. वहां टैंकर से जलापूर्ति की जा रही है. गया शहर के 53 वार्डों में मुख्य रूप से एपी कॉलोनी, चाणक्यपुरी कॉलोनी, रामपुर, गेवाल बिगहा, अशोकनगर, मुस्तफाबाद बागेश्वरी, मगध कॉलोनी और अन्य पहाड़ों पर बसे हैं, जहां जल संकट अधिक है.
गया में जलापूर्ति की स्थिति
- निगम के चापाकल 800, जिनमें 215 खराब पड़े हैं.
- प्याऊ और स्टैंड वाटर पॉइंट 152 हैं, जिनमें 42 सूख चुके हैं.
- मिनी जलापूर्ति केंद्र 74 हैं, 15 खराब हैं.
पहाड़ी इलाकों में सबसे ज्यादा समस्या
जब पहाड़ों का जिक्र होता है, तो बिहार के कैमूर को कैसे भुलाया जा सकता है. जिले का अधौरा प्रखंड के 108 गांव पहाड़ी पर बसे हुए हैं. इन गांवों में गर्मी के मौसम में पेयजल समस्या विकराल हो जाती है. पहाड़ी पर बसे होने के कारण इन गांवों तक पानी के टैंकर तक नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे में पाइप लाइन बिछा इन गांवों की प्यास बुझाई जा सकती थी. लेकिन सरकार ने इन गांवों की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया.
हालांकि, डीएम डॉ. नवल किशोर चौधरी की माने तो इस साल कैमूर का वाटर लेवल 10 फीट बढ़ा है. जो अच्छी खबर है. लेकिन गर्मी के बढ़ते प्रकोप के बाद ऐसा लगता नहीं कि लोग पानी के लिए जूझते नजर नहीं आएंगे.
एक लीकेज से बुझ रही प्यास
उत्तरवाहिनी गंगा तट पर बसे मुंगेर शहर के लोग पानी मुंगेर को नगर निगम घोषित कर दिया गया है. ऐसे में यहां जलापूर्ति के लिए लगभग 74 करोड़ रुपया भी खर्च किया जा चुका है. लेकिन हालातों पर गौर करें, सुबह से लेकर शाम तक लोग पानी के लिए जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं. शहर के तीन नंबर गुमटी इलाके में तो हालात ऐसे हैं कि गंदे नाले के पास पाइप के लीकेज से लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं. ऐसा यहां 20 सालों से चल रहा है. कुछ ऐसे ही हाल मक्ससपुर, मुगल बाजार, कौड़ा मैदान, बरी बाजार, प्रेम नीति बाग, रायसर, पूरब सराय का है.
ये है सरकारी हैंडपंप का हाल बिहार में 9 लाख चापाकल
कोरोना काल के पहले भागलपुर पहुंचे पीएचईडी मंत्री विनोद नारायण झा ने बताया था कि बिहारभर में 9 लाख चापाकल हैं. इनमें से 7 लाख 50 हजार चापाकलों की जिओ टैगिंग हो चुकी है. उन्होंने बताया था कि 250 कुंओं का जिर्णोद्धार करवाया जा चुका है. यह बात कहे उन्हें आज तीन महीने हो गए हैं. लागू लॉकडाउन के दौरान न जाने कितने नल खराब हो चुके हैं. इस बारे में विभाग को तेजी से काम करने की जरूरत है.
लीकेज से प्यास बुझाता बचपन - पानी की समस्या के लिए बिहार सरकार हर साल टैंकर सेवा शुरू करती है.
- कई जन प्रतिनिधि भी पानी की टैंकरों से पानी की किल्लत दूर करते हैं.
पानी के टैंकर आते ही लोग अपने डिब्बे, बाल्टी लेकर दौड़ लगाते हैं. इस बार भी कई जिलों से वैसी तस्वीरें आनी शुरू हो गई है. ऐसे में कोरोना वायरस को लेकर जारी गाइडलाइन के तहत सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन कराना भी जरूरी होगा.
सूखा पड़ा वाटर वर्क्स प्लांट 'रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून, पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून'
जल संरक्षण:रहिम ने ये पंक्तियां पानी की महत्ता को देखते हुए बहुत पहले ही लिख दी थी. ऐसे में बिहार के लिए ये लाइनें बहुत जरूरी हो जाती हैं क्योंकि बिहार में जहां एक तरफ सूखा पड़ता है, तो वहीं दूसरी तरफ बाढ़ के प्रकोप के बाद चारो ओर पानी ही पानी दिखाई देता है. सीएम नीतीश कुमार ने जल संरक्षण को लेकर एक बेहतरीन कदम उठाते हुए जल जीवन हरियाली मिशन की शुरूआत की है. इसके तहत जहां वृक्षारोपण कर पर्यावरण की सुरक्षा करना है, तो वहीं जल संरक्षण को लेकर वर्षा के जल को रोकना, पाइन, कुंओं और तालाब का जिर्णोद्धार कराना है.
पानी के लिए सोशल डिस्टेसिंग टूट सकती है - इसके लिए इस साल बिहार बजट में अलग से ग्रीन बजट लाया गया. और इस मिशन के लिए सबसे ज्यादा बजट राशि आवंटित की गई.
जल संकट को दूर करना है
'जल ही जीवन है, जल है तो कल है, सेव वाटर' ऐसी कथनी के साथ लोगों को जागरूक कर जल संरक्षण की कवायद हर साल की जाती है. गर्मी आते ही जल को बचाने के तमाम अभियान भी शुरू कर दिये जाते हैं. ऐसे में लोगों को ये जानना बेहद जरूरी है कि बिहार के कई जिलों में जल संकट की स्थिति गहरा रही है. ईटीवी भारत जहां सरकार से इन जिलों में जलापूर्ति के लिए सरोकार करता है. तो वहीं, आप सभी से पानी को बचाने के लिए अपील.