पटना: बिहार में इन दिनों सब कुछ शायद भगवान भरोसे चला रहा है. तभी तो बिहार पुलिस के जवानों को बिना पूरी तैयारी के ही मैदान में उतार दिया जाता है. ये हम नहीं कह रहे, यह तो पुलिस की कार्यशैली से पता चलता है.
बिहार पुलिस के पास दंगाइयों से निपटने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है. पुलिस के पास दंगा रोधी वाहन तो है. लेकिन इनमें ना तो पर्याप्त पुलिस बल है और ना ही आंसू गैस के गोले दागने वाले प्रशिक्षित जवान. इससे भी खराब हालत तो उग्र भीड़ को तितर-बितर करने वाले वाटर कैनन वाहन का है.
गाड़ियां रखने की जगह नहीं
ईटीवी भारत इन वाहन से जुड़े सवालों को लेकर सबसे पहले पटना पुलिस लाइन पहुंचा. वहां के सार्जेट गजेंद्र कुमार ने बताया कि हमारे पास पांच दंगा रोधी और तीन वाटर कैनन वाहन हैं. उन्होंने बताया कि इन गाड़ियों के रख-रखाव का काम यहीं से होता है. जब उनसे इन गाड़ियों के खस्ता हाल पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि हमारे पास गाड़ियों के रखने की जगह नहीं है. इसलिए ऐसी स्थित है. वहीं, गाड़ियों पर कर्मचारियों की तैनाती के बारे पूछा गया, तो उन्होंने कहा हम केवल गाड़ियों पर चालक मुहैया करते हैं. बाकी सभी जिम्मेदारी पुलिस कंट्रोल रूम की होती है.
डीएसपी ने कही ये बात
वहीं, पुलिस कंट्रोल रूम में तैनात डीएसपी देव नारायण मंडल ने बताया कि हमारे पास तीन दंगा रोधी और तीन वाटर कैनन गाड़ियां हैं. जब उनसे हमने पूछा कि दंगा रोधी गाड़ियों पर टीजी फायर करने वाले क्या ट्रेंड होते हैं, तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह पुलिस केंद्र के डीएसपी ही बता पाएंगे. हम उनसे परिस्तिथियों के हिसाब से बल का डिमांड करते हैं. उन्होंने भी माना कि इन गाड़ियों पर बल की कमी है.
नाले में गिर गए थे मजिस्ट्रेट
राजधानी में वाटर कैनन और आंसू गैस के गोले चलाने वाले ट्रेंड पुलिस बल नहीं है. इसके बारे में कोई जानकारी ना ही डीएसपी बता पाए और ना ही सार्जेट. शायद इन्हीं सब की वजह से हाल में प्रदर्शन कर रहे कंप्यूटर शिक्षकों पर फायर किये गए वाटर कैनन की लपेट में जिला मजिस्ट्रेट आ गए थे. इसका खामियाजा उन्हें इस कदर भुगतना पड़ा कि वो नाले में गिर गए.