पटना:बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) के दौरान बागी नेताओं (Rebel Leaders) की भूमिका ने एनडीए (NDA) को मुश्किल में डाल दिया था. कई नेताओं कोबीजेपी (BJP) और जदयू (JDU) के बीच गठबंधन के कारण बेटिकट होना पड़ा था. जिसके बाद उन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ा था.
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दो दर्जन सीटें ऐसी थी, जो बीजेपी की पारंपरिक सीटें मानी जाती थी. गठबंधन की वजह से भाजपा को उन सीटों को छोड़ना पड़ा था. सासाराम, नोखा, पालीगंज, संदेश और सूर्यगढ़ा सीट पर लंबे समय से बीजेपी का कब्जा था. लेकिन, जदयू कोटे में जाने के बाद बीजेपी के कई नेता बागी हो गए और उन्होंने लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा.
बीजेपी के 52 नेता और कार्यकर्ता लोजपा खेमे में गए और वहां उन्हें टिकट भी मिला. हालांकि, एक भी जीत नहीं पाए, लेकिन कई सीटों पर जदयू को उन उम्मीदवारों के वजह से हार का सामना करना पड़ा. 52 में से दर्जनभर नेता ऐसे थे, जो बीजेपी के पदाधिकारी थे. राजेंद्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया, उषा विद्यार्थी, जवाहर कुशवाहा, रविंद्र यादव और इंदु कश्यप का नाम सूची में शामिल है.
बीजेपी के बागी नेताओं की वजह से ज्यादातर सीटों पर जदयू को हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी से जहां 52 नेता बगावत कर चुनाव लड़ रहे थे. वहीं, जदयू में बागी नेताओं की संख्या लगभग दर्जनभर थी. जदयू ने बागी नेताओं को पार्टी में एंट्री देना शुरू कर दिया है.
जिसके बाद बीजेपी खेमे में भी पार्टी और संगठन की मजबूती के लिए बागी नेताओं को वापस लाने की कवायद जोर पकड़ने लगी है. जानकारी के मुताबिक राजेंद्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया और उषा विद्यार्थी सरीखे कई नेता वापसी के लिए प्रयास कर रहे हैं. दिल्ली में शीर्ष नेताओं के साथ उनकी मुलाकात भी हो चुकी है.