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Bihar News: 'खतरे में लोकतंत्र, स्कूलों में प्रार्थना की तरह हो संविधान की प्रस्तावना का पाठ', शिवानंद का नीतीश को पत्र

आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर लोकतंत्र को खतरे में बताया. उन्होंने अपने लेटर में लिखा कि बीजेपी और आरएसएस का यकीन भारत के संविधान पर नहीं है. उन्होने नीतीश को सुझाव देते हुए लिखा कि जिस तरह से स्कूलों में प्रार्थना होती है ठीक उसी तरह संविधान की प्रस्तावना का पाठ भी सभी सरकारी/गैरसरकारी संस्थानों में हो.

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Published : Jun 10, 2023, 8:12 PM IST

पटना : राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम खुला पत्र लिखा है. शिवानंद तिवारी ने लिखा है कि हमारे संविधान पर आज गंभीर खतरा है, आप इसे स्वयं महसूस कर रहे होंगे. उन्होंने इस पत्र की कॉपी डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के साथ ही महागठबंधन में शामिल सभी दलों के नेताओं को भी भेजा है.

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शिवानंद तिवारीने शनिवार को अपने लेटर में लिखा कि ''माननीय मुख्यमंत्री जी आप स्वयं महसूस कर रहे होंगे कि हमारे संविधान और लोकतंत्र पर आज गंभीर ख़तरा है. इसके पहले आपातकाल के रूप में हमलोगों ने संविधान और लोकतंत्र पर ख़तरे को झेला है. लेकिन उस अंधेरे दौर को पार कर, देश ने लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया था. लेकिन संविधान पर आज फिर से जो ख़तरा दिखाई दे रहा है. वह पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा गंभीर और चिंताजनक है. ''

'आपातकाल का कालखंड एक भटकाव' : बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस भी साथ है. इसलिए आपातकाल को शिवनांद तिवारी ने 'भटकाव काल' बताया और लिखा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी. संविधान का निर्माण किया गया. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान के उद्देश्यों की घोषणा की, इसलिए जो आपातकाल लगा वह एक भटकाव था. लेकिन आज की जो स्थिति है आज जो संविधान और लोकतंत्र पर नजर आ रहा है उसका असर बहुआयामी दिखाई दे रहा है.


'बीजेपी और आरएसएस का यकीन संविधान में नहीं' : उन्होंने लिखा कि ''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश में जो सरकार है उसका यक़ीन भारतीय संविधान में नहीं है. वह लोकतंत्र में भी यक़ीन नहीं करती. उसके विचार इस मामले में प्रारंभ से ही बिल्कुल स्पष्ट और घोषित हैं. देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की संविधान विरोधी घोषणा इनके द्वारा रोज़ाना हो रही है. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि हिंदू समाज की संरचना ही संविधान विरोधी है. हमारा संविधान सबको बराबरी और समान अवसर देने की गारंटी देता है. जबकि हिंदू समाज में व्यक्ति का स्थान जन्मना निर्धारित होता है.''

'एक खास हिस्सा जन्म से श्रेष्ठ..' : शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा कि ''हिंदू समाज का एक छोटा हिस्सा जन्मना श्रेष्ठ माना जाता है. ज्ञान, विद्या, धन, संपत्ति राज-काज आदि उन्हीं के लिए आरक्षित हैं. जबकि शेष के ज़िम्मे श्रेष्ठों की सेवा और चाकरी को धार्मिक कर्तव्य माना गया है. लगभग एक चौथाई आबादी तो अछूतों की श्रेणी में डाल दी गई है. आदिवासी समाज को तो पूर्ण मनुष्य का दर्जा भी प्राप्त नहीं हुआ है. महिलाओं के लिए भी हिंदू समाज व्यवस्था में दोयम दर्जा निर्धारित है. आज के दिन भी, जबकि हमारा संविधान सबको बराबरी का अधिकार दे रहा है. आये दिन वंचित समाज के साथ होने वाले अमानुषिक व्यवहार की ख़बर हम रोज़ाना सुनते और पढ़ते हैं.''

'स्कूलों में हो संविधान की प्रस्तावना का पाठ': शिवानंद तिवारी ने कहा कि संविधान की रक्षा करना हमारा पहला धर्म है. देश में अगर संविधान और लोकतंत्र नहीं रहेगा तो जो हमारे देश में वंचित वर्ग है उसकी हालत और खराब हो जाएगी. उसकी हालत गुलामों से भी ज्यादा बदतर हो जाएगी. उन्होंने ऐसे लोगों पर चिंता जताते हुए लिखा है कि जिनको संविधान को लेकर ज्यादा सजग होना चाहिए वही वर्ग दुर्भाग्य से संविधान की महत्ता से वंचित है. संविधान की प्रस्तावन को ठीक उसी तरह से वाचन करना चाहिए जैसे स्कूलों में प्रार्थना कराई जाती है.

''इस आलोक में संविधान की रक्षा हमारा आपद धर्म है. देश में अगर संविधान और लोकतंत्र नहीं रहेगा तो वंचित समाज की स्थिति ग़ुलामों से भी ज़्यादा बदतर हो जाएगी. लेकिन दुर्भाग्य है कि जिनको संविधान और लोकतंत्र की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है वो भी संविधान की महत्ता से अनभिज्ञ हैं. आज़ादी के बाद से ही सभी शिक्षण संस्थानों में प्रार्थना की तरह संविधान की प्रस्तावना से प्रत्येक कक्षा की शुरुआत होनी चाहिए थी.''-शिवानंद तिवारी, वरिष्ठ नेता, राष्ट्रीय जनता दल

''सरकारी सेवकों के लिए भी अपना पद धारण के पूर्व संविधान की प्रस्तावना और उसके प्रति निष्ठा के संकल्प के साथ कुर्सी पर बैठने का प्रावधान होना चाहिए था. उपरोक्त संदर्भ में मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थानों में, चाहे वे सरकारी हों या ग़ैरसरकारी, रोज़ाना संविधान की प्रस्तावना का पाठ कराने का नियम बनाया जाना चाहिए. सरकारी सेवकों तथा जन प्रतिनिधियों के लिए भी इसके नियमित और सार्वजनिक पाठ का कोई नियम बनना चाहिए. इस प्रकार संविधान के पक्ष में समाज में और ज़्यादा सबल वातावरण बनाने की शुरुआत की जा सकती है. उम्मीद करता हूँ कि एक पुराने साथी के इन सुझावों पर आप गंभीरता पूर्वक विचार करेंगे.''

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