पटना: पूरे देश में मोटे अनाज को लोग अपने खान-पान में शामिल कर रहे हैं. इसके फायदों को जानने के बाद हर कोई मोटे अनाज का रूख कर रहा है. यहां तक कि केंद्र सरकार ने भी अपने बजट में इसे जगह दी है और घोषणा की गई कि पूरे विश्व में मोटे अनाज को बढ़ावा दिया जाएगा. भले ही आज हम सभी मोटे अनाज के गुणों से अवगत हुए हों लेकिन बिहार की बेटी पिछले 10 सालों से सभी को मोटे अनाज के प्रति जागरूक कर रही हैं. पर्यावरणविद सह रिसर्चअर ऋचा रंजन मोटे अनाज को लेकर न केवल आम लोगों को इसके फायदे बता रही हैं और बल्कि किसानों को मोटे अनाज उपजाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
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कब आया मोटे अनाज पर रिसर्च का ख्याल:ऋचा ने बताया कि जब मेरे पिता पूर्व डीजीपी अभयानंद एक बार बहुत ही बुरी तरह से बीमार पड़े तो मैं डर गई थी. उस दौरान अभयानंद जी बिहार के डीजीपी थे और ऋचा नामी गिरामी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट. पिता कई तरह की दवाइयां खाते थे और बेटी इस बात को लेकर परेशान रहती थी कि इतनी दवाइयों के साथ जिन्दगी जीने का क्या मतलब है. उसके बाद ऋचा ने रिसर्च करना शुरू किया.
"युवा वर्ग एक बार फिर से इससे जुड़ेगा. मडुआ, ज्वार, बाजरा इत्यादि मोटे अनाज हैं और एक बार फिर से लोग इसकी तरफ मुड़ रहे हैं. कोरोना ने लोगों को अपनी गलतियों पर सोचने पर मजबूर कर दिया है. इसे सिर्फ हम मिलेट ना समझे बल्कि बीज से थाली तक के भोजन को समझने की जरूरत है."- ऋचा रंजन, पर्यावरणविद
ऋचा की छोटी मुहिम का बड़ा असर: ऋचा ने मोटे अनाज पर नौकरी में रहते ही रिसर्च शुरू की. रिसर्च में पता चला कि मोटे अनाज ही स्वस्थ जीवन का आधार हैं. मानव जीवन से मोटे अनाज के दूर हो जाने की वजह से तमाम बीमारियां हो रही हैं. ऋचा के रिसर्च का दायरा बढ़ा. उसने मोटे अनाज को लेकर बड़े बड़े सेमिनार आयोजित कर लोगों को बनाता शुरू किया. सैकड़ों लोग ऋचा की बातों को फॉलो कर अपने स्वास्थ्य में सुधार करने सफल रहे और उन लोगों से ऋचा तीन अन्य लोगों को जागरूक करने की गुरुदक्षिणा लेती हैं. ऋचा चली थी अकेली लेकिन कारवां बनता गया और फिलहाल उससे सोशल मीडिया से लाखों लोग जुड़कर सलाह ले रहे हैं.
ऋया और उनके पिता के हेल्थ में दिखा बड़ा परिवर्तन:ब्रिटिश जर्नल में 18वीं सदी की एक रिसर्च पढ़ी. उस रिसर्च के मुताबिक यदि कोई भी व्यक्ति डिब्बा बंद चीजों को खाना छोड़ देगा तो काफी हद तक स्वस्थ रह सकता है. अभयानंद जी बीपी और शुगर की वजह से दिन भर में एक दर्जन दवाइयां खाते थे. महज इस प्रयोग के दम पर उनका बीपी और शुगर दोनों नार्मल रहने लगा. ऋचा गलत खानपान की वजह से पेट की परेशानी झेलती थी उसे भी मुक्ति मिल गयी. फिलहाल गम्भीर बीपी और शुगर के मरीज रहे अभयानंद बिना कोई दवा खाये आराम से जिंदगी जी रहे हैं.
मोटा अनाज उपजाने के लिए किसानों को किया जागरूक: ऋचा को लगा कि लोगों को जागरूक करने का मुहिम जारी है,लेकिन यदि मोटे अनाज का उत्पादन नहीं होगा तो लोगों की मांग की पूर्ति कैसे होगी. बतौर वाइस प्रेसिडेंट की नौकरी छोड़कर वो बाहर आ गयीं. मगध इलाके को अपने मुहिम के लिए चिन्हित की और अपने अभियान को आगे बढ़ाया. गया,जहानाबाद,अरवल,औरंगबाद,नालंदा,नवादा और पटना के ग्रामीण इलाकों के किसानों से ऋचा ने सम्पर्क किया और सभी जिले के पंचायत प्रतिनिधियों को जागरुक कर किसानों को जुटाना शुरू किया. ऐसे पंचायतों में ऋचा खुद जाकर किसानों को मोटे अनाज उपजाने के प्रति जागरुक करती रहीं.
कौन है ऋचा रंजन: बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद और डॉ नूतन आनंद की बेटी ऋचा रंजन हैं. उनकी स्कूली पढ़ाई पटना के नोट्रे डेम अकादमी से हुई. 12 वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पहले प्रयास में आईआईटी रुड़की तक पहुंची और वहां से बीटेक करने के बाद देश के नामी गिरामी संस्थान से प्रबंधन की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद ऋचा देश के कई नामी गिरामी कंपनियों में वाइस प्रेसिडेंट और प्रेसिडेंट के रूप में कार्य कर चुकी हैं. ऋचा की शादी भी पूर्व आईबी चीफ दिनेश्वर शर्मा के बेटे और प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत लड़के से हुई. ऋचा ने कभी भी अपनी परंपरा से समझौता नहीं किया. खास-पान हो या वेश-वूषा ऋचा को भारतीय खाना और भारतीय परम्परा के कपड़े पहनना पसंद है.
'गुणवत्ता के लिए बीज पर ध्यान देने की जरूरत': इस बार के आम बजट में केंद्र सरकार जिस अंदाज मोटे अनाज को लेकर गंभीरता दिखाई है वो अपने देश की परम्परागत चीज है. हालांकि बजट में प्रावधान के बाद मोटा अनाज न केवल देश में बल्कि विदेश में भी चर्चा का विषय बन गया है. केद्र के इस पहल से उत्साहित ऋचा अब ऐसे अनाजों के बीज और उसके संरक्षण पर कार्य करने की तैयारी कर रही हैं. ऋचा की मानें तो किसी भी अनाज की गुणवत्ता उसके बीज पर केंद्रित होती है.
चमक धमक से दूर ऋचा रंजन की पहल की चर्चा:आम तौर पर बेहतर नौकरी पाने के बाद लोग चमक धमक की दुनिया में जीने लगते हैं और अपने तक सिमट जाते हैं. लेकिन बिहार की बेटी ऋचा एक मिसाल हैं जो चमक धमक की जिन्दगी को छोड़कर अपनी मिट्टी से जुड़ी परम्परागत जिंदगी को गले लगा कर लोगों को जागरूक करती रहीं.