पटना:रामविलास पासवान की पहली पुण्यतिथि (Ram Vilas Paswan First Death Anniversary) पर पटना और दिल्ली तक श्रद्धांजलि सभा (Tribute to Ram Vilas Paswan) का आयोजन किया गया. नेताओं ने रामविलास पासवान को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और चिराग के साथ ही पशुपति पारस को जीवन के नए राह पर बढ़ने की सांत्वना और आशीर्वाद दिया.
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इससे पटना और दिल्ली दोनों की सियासत में एक सवाल खड़ा हो गया कि पशुपति पारस के बुलावे पर नीतीश कुमार रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने गए और चिराग के बुलावे पर लालू यादव ने रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि दी. पटना में राजनीतिक गलबहिया इस आधार पर भी सियासत में सुन लेने का मामला है जो नीतीश कुमार के पहुंचने के बाद पशुपति पारस के साथ हुआ होगा, लेकिन लालू यादव के पहुंचने के बाद जो दिल्ली में हुआ उसमें लालू यादव का चिराग के लिए आशीर्वाद अधूरी सियासत की नई कहानी लिख गया.
8 अक्टूबर रामविलास पासवान की पहली पुण्यतिथि थी और बिहार की राजनीति में 8 अक्टूबर 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख. लालू यादव चिराग पासवान के बुलावे पर रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने गए. उन्होंने अपनी बात भी रखी. राजनीति की शुरुआत की बात कही और यह भी कहा कि गरीबों के हक हुकूक की लड़ाई के लिए रामविलास पासवान का पूरा जीवन समर्पित रहा. चिराग पासवान को लेकर पूरा स्नेह है और यह भी कह दिया कि चिराग पासवान के लिए मेरा पूरा आशीर्वाद है.
सियासत का यह पूरा सत्य है कि राजनीति हर जगह होती है. मौत के पहले भी और मरने के बाद भी. लालू यादव रामविलास पासवान के मित्र थे. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि जब लोजपा की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई थी तो लालू यादव ने अपनी सीट से उन्हें राज्यसभा भेजा था. हालांकि बदले राजनीतिक हालात में लालू यादव के साथ रामविलास पासवान ज्यादा दिनों तक रहे नहीं और उन्होंने पार्टी बदल ली. रामविलास पासवान मोदी के साथ गए. मोदी की सरकार में मंत्री बने और मंत्री रहते उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद जो कहानी बिहार में लिखी गई वह राजनीति में कई सिद्धांतों के जुड़ने और बनने बिखरने की कहानी है.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान नीतीश कुमार के विरोध में चुनावी मैदान में थे. नारे लगा रहे थे नेता तेजस्वी अभी नहीं, नीतीश कभी नहीं. अब 2 सीटों पर हो रहे बिहार विधानसभा के उपचुनाव में चिराग पासवान की पार्टी चुनावी मैदान में है और सामने नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों के उम्मीदवार भी हैं. अब लालू यादव रामविलास पासवान की पुण्यतिथि में पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित किए और चिराग पासवान को पूरा आशीर्वाद दे दिए तो सवाल यह उठ रहा है कि इस आशीर्वाद का फलाफल क्या होगा? क्योंकि चिराग पासवान जिस तरह की राजनीतिक हालात में फंसे हैं उसमें उन्हें काफी लड़ाई लड़नी है. इसमें 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव में लालू यादव के आशीर्वाद और उससे फलीभूत होने वाले परिणाम की पहली लड़ाई है.
अब लालू यादव के आशीर्वाद को अगर चिराग पासवान अपने साथ जोड़ लेते हैं तो आगे की राजनीति थोड़ी दूसरी जगह पकड़ती दिख रही है, लेकिन इसमें वक्त बचा नहीं है. लालू यादव के आशीर्वाद को अगर अपना सियासी आधार बनाकर तेजस्वी के साथ जुड़ने की बात चिराग पासवान करते हैं तो यह शायद लालू के आशीर्वाद का सबसे ज्यादा फलीभूत होने वाला परिणाम हो. लेकिन अगर विधानसभा के उपचुनाव में तेजस्वी यादव के सामने चिराग मजबूती से लड़ते हैं और लालू यादव के आशीर्वाद के साथ जीत का दावा करते हैं तो यह लालू यादव की पार्टी राजद के लिए ठीक नहीं होगा और इसमें आशीर्वाद लालू यादव ने भले पूरा दिया है लेकिन सियासत यहां अधूरी रह गई है. पूरी कैसे होगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
पूरे आशीर्वाद की अधूरी सियासत चिराग पासवान के साथ सिर्फ लालू यादव की कहानी में नहीं है. यह कहानी राम और हनुमान के साथ भी जुड़ी हुई है. जिसमें हनुमान की भक्ति राम के साथ तो थी. हनुमान ने सेवा भी पूरी थी. संकल्प भी पूरा था. हनुमान के मनोभाव भी पूरे थे, लेकिन राम तक वह आवाज पहुंची ही नहीं. 2020 में चिराग पासवान नीतीश कुमार के खिलाफ पूरे तौर पर मैदान में उतर गए थे. हालांकि नीतीश कुमार ने यह कहा था कि चिराग पासवान की पार्टी हमारे साथ नहीं है. चिराग पासवान को मनाने की कोशिश बीजेपी की तरफ से भी की गई, लेकिन चुकी हनुमान को इस बात का अंदाजा था कि चाहे स्थिति जो भी बने राम उनका साथ नहीं छोड़ेंगे वह नहीं माने.
लेकिन कलयुग में लिखी जा रही रामायण जो सियासी पन्नों को जोड़ रही है उसमें कौन कब किस रंग को ले लेगा कहना मुश्किल है. यही 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी को मिला. हालांकि नीतीश कुमार को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. और खुद नीतीश कुमार ने यह कहा कि लोजपा के कारण कई सीटें उन्हें गंवानी पड़ी. चिराग को यहां भी आशीर्वाद तो पूरा था, लेकिन सियासी हकीकत अधूरी कहानी ही बयां कर गया.
बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर हो रहा उप चुनाव बिहार में नए राजनीतिक मापदंड, समीकरण और जोड़-गुणा-गणित सबकुछ बैठा रहा है. अब देखना यह है कि सियासी मापदंड का जो पैमाना राजनैतिक समीकरण के साथ मुद्दों की सियासत के लिए कुशेश्वरस्थान और तारापुर में खड़ा हो रहा है. अब देखने वाली बात होगी कि विधानसभा में स्थान पाता कौन है और तारापुर किसका सितारा चमकाता है. क्योंकि आशीर्वाद तो पूरा सभी को मिला है.
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