पटना:मिसाइल मैन (Missile Man Of India) के नाम से मशहूर और किसानों और नौजवानों के बीच खासे लोकप्रिय रहे भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलामकी आज सातवीं पुण्यतिथि (APJ Abdul Kalam Death Anniversary) है. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का बिहार में पटना के पालीगंज (Paliganj Farmers Paid Tribute Yo APJ Abdul Kalam) से खासा लगाव था. 2003 से 2011 के बीच डॉ कलाम चार बार 2003, 2005, 2008 और 2011 में पालीगंज आए थे. कलाम साहब ने यहां किसानों से बातचीत की थी, जिसे किसान आज भी याद करते हैं.
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पालीगंज के किसानों ने किया डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को नमन: डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने पालीगंज के किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए कई प्रयास किए थे. पालीगंज के किसान भी डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को काफी याद करते हैं. किसान बताते हैं कि जब तक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जीवित थे सरकारी महकमे में उन लोगों की सुनवाई होती थी. सरकारी अधिकारी समय-समय पर आकर उन लोगों की सुध लेते थे.
'किसानों पर ध्यान देते थे कलाम साहब': किसानों ने बताया कि कलाम साहब जितना ध्यान किसानों पर देते थे उतना आज तक किसी ने नहीं दिया. उन लोगों के फसलों के बारे में जानकारी लेते थे लेकिन जब से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का निधन हुआ है तबसे किसान खुदको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. डॉक्टर कलाम के निधन के बाद सरकारी अधिकारी किसानों की सुध नहीं लेते.
'बिहार से था गहरा नाता': किसानों ने कहा कि जब कलाम साहब पालीगंज आए थे तो हमसे बात की थी और कई चीजों के बारे में जानकारी ली थी. खेतों की मिट्टी की समय-समय पर सॉइल टेस्टिंग करने की व्यवस्था भी की. किसान बताते हैं कि पालीगंज में डॉक्टर कलाम जब 2011 में आए तब उन्होंने यहां मिट्टी जांच प्रयोगशाला (Soil Testing Laboratory) का उद्घाटन किया. यहां के किसानों के खेतों की मिट्टी जांच शुरू हुई. किसानों की पैदावार कम लागत में दोगुनी हो गई. लेकिन अभी की स्थिति यह है कि खेतों में सिंचाई की व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल है और किसान बेबस और मायूस हैं.
मिसाइल मैन के लिए किसान थे अहम: किसान कविंद्र कुमार बताते हैं कि साल 2005 में जब कलाम साहब पालीगंज के सिंचाई भवन परिसर में पहुंचे थे तब यहां सभागार में किसानों से बात कर रहे थे. इस दौरान एक व्यक्ति ने नेतागिरी की बातें शुरू कर दी जिसके बाद कलाम साहब ने सीधे कहा सीट डाउन, मैं यहां सिर्फ किसानों से बातें करने आया हूं.
"डॉ कलाम साहब जब तक जीवित थे हम काफी उत्साहित थे. पैदावार की सही मूल्य पर पूरी बिक्री भी हो जाती थी लेकिन अब पैदावार की सही बिक्री भी नहीं हो पाती है और पैदावार भी घट गई है. डॉक्टर कलाम की सोच थी कि किसानों को हर समय कुछ ना कुछ आमदनी होते रहे. किसानों के खेत कभी भी परती यानी कि बिना फसल के ना रहे. कलाम साहब ने किसानों को बताया कि रबी और खरीफ के अलावा भी बीच के समय में खेतों पर औषधीय पौधे और सब्जी को उगाया जा सकता है. जिससे किसानों की आमदनी अच्छी हो सकती है. इसका लाभ भी हमें मिला."- कविंद्र कुमार, किसान
"जब डॉ कलाम आए थे तो उनके साथ कई कृषि वैज्ञानिक भी आए थे. वैज्ञानिकों ने बताया कि किस खेत में कौन सी फसल बेहतर हो सकती है. किसानों को उन्होंने नई प्रजाति के बीज और कई फसलों के गुणवत्तापूर्ण भी उपलब्ध कराएं. इसके साथ ही खेती की नई तकनीक के बारे में भी बताया गया जिससे हमें काफी फायदा हुआ. पहले 15 से 20 किलो धान का बीज एक बीघा में होता था, 10 क्विंटल पैदावार होती थी. अभी की स्थिति यह है कि 2 किलो से 5 किलो के बीच धान के बीज एक बीघा में किसान बोते हैं और 20 क्विंटल पैदावार करते हैं."- कामता प्रसाद सिंह, किसान
"डॉक्टर कलाम के पालीगंज आने के बाद ही हमें पता चला कि औषधीय पौधों की भी खेती कर सकते हैं जिसके बाद सभी पुदीना, तुलसी, धनिया इत्यादि कई प्रकार के औषधीय पौधे उपजाना शुरू किए. इसके बाद आमदनी भी काफी बढ़ गई."- विष्णु देव कुमार, किसान
"एपीजे कलाम 2005 में आएं थे. तब मैंने उनसे मुलाकात की थी. उस समय इलाके के रोड भी दुरुस्त हो गए थे और खेती से जुड़े कई नई तकनीक के बारे में भी उन लोगों को पता चला था. वह किसानों से बेहद सहज भाव से मिलते थे. उनकी बातों को सुनते थे. हमने जो भी सवाल किया था उनसब का कलाम साहब ने जवाब दियाथा."- महेंद्र प्रसाद, किसान
डॉक्टर कलाम के आने के बाद यहां के किसानों का जीवन बदल गया. उनके समय में कृषि विभाग में यहां के किसानों का अलग रुतबा होता था. यहां के किसानों के सभी पैदावार बिक जाते थे. कई औषधीय पौधों के बारे में और नई नई किस्म के सब्जियों के बारे में भी जानकारी मिली. औषधीय पौधों के तेल निकालने के लिए सिंचाई भवन के परिसर में ही एक यंत्र लगाया गया, जहां लेमनग्रास, मिंट, तुलसी इत्यादि के रस निकाले जाते थे.- उदय प्रसाद, किसान
बोले किसान- 'बहुत याद आते हैं कलाम साहब': पालीगंज के किसानों ने स्व. डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम को नमन करते हुए एक स्वर में कहा कि उन्होंने असल में किसानों का विकास किया था. लेकिन डॉक्टर कलाम के निधन के बाद इलाके में औषधीय पौधों के पैदावार कम हो गई. क्योंकि पैदावार के बाद उसका बाजार यहां के किसानों को नहीं मिल पाया. उन्होंने बताया कि यहां के किसान डॉ कलाम को काफी मिस किया करते हैं. उनके निधन के बाद यहां के किसानों के जीवन में एक खालीपन सा पैदा हो गया है. डॉ कलाम जब तक थे लगता था कि उनकी सुध लेने वाला उनका कोई अपना महत्वपूर्ण आदमी देश में है.