नीतीश कुमार की 2024 की रणनीति पटना:बिहार मेंनीतीश कुमार पिछले 18 सालों से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं. कभी राजद के साथ तो कभी बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बनाते रहे हैं. लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही रहे हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में जदयू के खराब परफॉर्मेंस के बाद कुछ महीनों के लिए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी जरूर अपनी पार्टी के नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी थी, लेकिन कुछ ही महीने में उनसे फिर वापस भी ले लिया.
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नीतीश को प्रमोट करने में लगी जेडीयू: अब नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता की मुहिम चला रहे हैं. पार्टी की तरफ से कभी उन्हें प्रधानमंत्री पद का सबसे योग्य उम्मीदवार का दावेदार बताया जाता है तो कभी फूलपुर जहां नेहरू चुनाव लड़े थे वहां से चुनाव लड़ने की चर्चा की जाती है. एक महीने में दो-दो पुस्तक नीतीश कुमार के नजदीकियों की ओर से लांच किया जाता है.
शुरुआती कार्यकाल की चर्चा जोरों पर: नीतीश कुमार के शुरुआती कार्यकाल में किए गए विकास कार्य की चर्चा हर जगह होती है लेकिन 2014 के बाद से उनके प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर चर्चा भी लगातार हो रही है. अपने शुरुआती कार्यों की चर्चा नीतीश कुमार भी लगातार करते हैं. उनके दो कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों को ही पार्टी के नेता अभी भी भुनाने में लगे हैं.
सुशासन बाबू और विकास पुरुष की बनाई पहचान: नीतीश कुमार के 10 साल के शुरुआती दो कार्यकाल में देखें तो कई बड़े फैसले हुए जिसमें उन्हें सुशासन बाबू का दर्जा मिला और विकास पुरुष के नाम से जाने जाने लगे. कानून व्यवस्था, सड़क निर्माण, साइकिल योजना, पोशाक योजना जैसे कई बड़े फैसले लिए गए. महिलाओं को पंचायत में 50% आरक्षण ने बड़े बदलाव किए. लेकिन पिछले 8 साल की बात करें तो नीतीश कुमार कभी राजद के साथ तो कभी बीजेपी के साथ गठबंधन और सरकार बनाने में ही अपनी ऊर्जा लगाते रहे हैं.
1 साल में नहीं हुआ कोई बड़ा काम: हालांकि सात निश्चय योजना और शराबबंदी जैसी घोषणा भी नीतीश कुमार ने की, लेकिन इन योजनाओं ने नीतीश कुमार को बहुत ज्यादा लाभ नहीं दिलाई. पिछले साल नीतीश ने एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनायी. सरकार को बने एक साल पूरे हो गए. इस एक साल में नीतीश कुमार के बड़े फैसलों में देखें तो जातीय गणना के अलावा कोई दूसरा काम नजर नहीं आएगा.
नीतीश केंद्र सरकार पर हमलावर:नीतीश कुमार हमेशा मीडिया से बातचीत में कहते हैं कि हमने ही विकास किया है. बीजेपी और नरेंद्र मोदी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ये लोग तो सिर्फ प्रचार करने वाले लोग हैं. लेकिन नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा का साफ कहना है कि बिहार में तभी विकास हुआ और नीतीश कुमार तभी सुशासन बाबू बने जब बीजेपी उनके साथ थी.
"इन लोगों को प्रचार करना आता है. काम की बात नहीं करते हैं. बिहार में जो भी विकास हुआ है उसे सरकार ने करवाया है. विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता तो प्रदेश विकास की राह में और आगे बढ़ता."- नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
"आरजेडी उनके साथ गई तो कुशासन कायम हो गया. आज नीतीश कुमार क्यों कुंद पड़ गए हैं. हत्या लूट बलात्कार जैसी घटनाएं लगातार हो रही हैं."- विजय सिन्हा, नेता प्रतिपक्ष
नीतीश कुमार 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की मुहिम चला रहे हैं. नीतीश कुमार ने ही विपक्ष को एकजुट किया है. नीतीश कुमार के नेतृत्व का ही कमाल है कि उन पर विपक्ष के लोग विश्वास कर रहे हैं.- विजय चौधरी, मंत्री, बिहार सरकार
नीतीश की पुस्तक को लालू ने किया था लॉन्च: वहीं बीजेपी लगातार आरोप लगा रही है कि नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता की मुहिम इसलिए चला रहे हैं कि उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की ओर से भी कई बार बार यह बयान आता है कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के सबसे योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं तो कभी जिस स्थान से जवाहरलाल नेहरू चुनाव लड़े थे, फूलपुर वहां से चुनाव लड़ाने की चर्चा कर देते हैं. हाल के दिनों में ही नीतीश कुमार की दो पुस्तक लांच की गई है. एक उनके नजदीकी साथी उदय कांत मिश्रा ने पुस्तक लांच किया तो दूसरा पार्टी के नेता ने पुस्तक लॉन्च किया है. खास बात यह रही कि नीतीश कुमार के मित्र उदय कांत मिश्रा ने पुस्तक लालू यादव से लांच करवाया.
"नीतीश कुमार को इमेज बिल्डिंग की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने जो काम किया है उससे तो हम लोग सीख रहे हैं. विपक्षी एकता को उन्होंने एकजुट किया है."- सुमित सिंह, साइंस टेक्नोलॉजी मिनिस्टर
नीतीश के कार्यकालों का लेखा-जोखा: नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद कानून व्यवस्था से लेकर विकास के कई कार्य किये. सुशासन बाबू, विकास पुरुष जैसे नाम से संबोधन किया जाने लगा. लेकिन 2015 के बाद नीतीश कुमार को पलटू राम जैसे संबोधनों से संबोधित किया जाने लगा. इस दौरान सात निश्चय योजना और शराबबंदी जैसे बड़े फैसले जरूर नीतीश कुमार ने लिए लेकिन इसका लाभ नहीं मिला.अब महागठबंधन सरकार के पिछले 1 साल के कामों की बात करें तो नीतीश कुमार ने जातीय गणना कराने के अलावा कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है. 10 लाख नौकरी 10 लाख रोजगार देने की घोषणा जरूर की है.
नीतीश कुमार की लोकप्रियता के कारण ही उन्हें 117 सीट विधानसभा में कभी मिला था. पिछले विधानसभा में घटकर वह 42 हो गया और जो स्थिति है आने वाले दिन में जदयू का नाम लेने वाला कोई नहीं रहेगा.-प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार
2013 में नरेंद्र मोदी का विरोध: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2013 में बीजेपी के तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए गए थे तो उस समय नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज हो गए. एनडीए से अलग हो गए उसके बाद कई मौके पर उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी से ज्यादा मुझे अनुभव है. बाद में विधानसभा चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़े और बिहार में सरकार जरूर बना ली. लेकिन 2 साल बाद 2017 में फिर से बीजेपी के साथ हो गए.
2017 में बीजेपी के साथ:कभी नरेंद्र मोदी के खिलाफ रहने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर से नरेंद्र मोदी की तारीफ करते दिखे, लेकिन पिछले साल फिर से नरेंद्र मोदी के विरोध में विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम की शुरुआत कर दी है. ऐसे तो कहते हैं कि बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटाना है लेकिन बीजेपी नेताओं की तरफ से लगातार बयान दिया जाता है कि नीतीश कुमार की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. जदयू के नेता उनके पुराने कामों को पुस्तक के माध्यम से या फिर चर्चाओं के माध्यम से भुनाने में लगे हैं. हालांकि इसका लाभ कितना मिलता है यह देखने वाली बात होगी.