पटनाःबिहार में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में एक और बड़ा प्रयास होता दिख रहा है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा निर्देशों के मुताबिक अब बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी खुद जुर्माना लगा सकेगा. इसके पहले उसे यह अधिकार नहीं था. इस बात की जानकारी बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ अशोक घोष ने की.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जारी की गाइडलाइंस
बोर्ड के अध्यक्ष डॉ अशोक घोष ने बताया कि बोर्ड को मिले इस अधिकार के बाद बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एडवाइजरी जारी करने के साथ-साथ अब प्रदूषण फैला रही इकाइयों को दंडित भी कर सकेगा. उन्होंने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिशा निर्देश दिया है कि जुर्माना किस तरह से होगा और किस आधार पर होगा. इसे लेकर गाइडलाइंस भी जारी की गई है.
डॉ अशोक घोष, अध्यक्ष बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एनजीटी के दायरे में आते हैं जैवविवधता के सभी कानून
उन्होंने कहा कि किसी भी ऐसे उद्योग को जो प्रदूषण फैला रहा हो उसके लिए कई मानक तय किए गए हैं. जिनमें प्रमुख हैं उद्योग का उत्पादन क्षेत्र, कितने दिन उल्लंघन हुआ, प्रभाव वगैरह. नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल एक संवैधानिक संस्था है. इसके दायरे में देश में लागू पर्यावरण, जल, जंगल, वायु और जैवविवधता के सभी नियम-कानून आते हैं.
पर्यावरण सुरक्षा के लिए बनाया गया विशेष कोर्ट
बता दें कि 2 जून 2010 को भारत में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कानून अस्तित्व में आया था. 1992 में रियो में हुई ग्लोबल यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन एन्वॉयरनमेंट एण्ड डेवलपमेन्ट में अन्तरराष्ट्रीय सहमती बनने के बाद से ही देश में इस कानून का निर्माण जरूरी हो गया था. भारत की कई संवैधानिक संस्थाओं ने भी इसकी संस्तुती की थी. ट्रिब्यूनल यानी एक विशेष कोर्ट. इसे न्यायाधिकरण ही कहते हैं, जो क्षेत्र विशेष सम्बन्धी मामलों को ही लेता है.
एनजीटी में सिर्फ इन्हीं कानून उल्लघंन को दी जा सकती है चुनौती
- जल (रोक और प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम), 1974
- जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) उपकर कानून, 1977
- वायु (रोक और प्रदूषण नियन्त्रण) अधिनियम 1981
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
- पब्लिक लायबिलिटी इन्श्योरेंस कानून 1991
- वन संरक्षण कानून 1980
- जैव विविधता कानून 2002