पटना:शनिवार को राजधानी पटना के होटल चाणक्य में राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (National Filaria Eradication Program In Bihar) के तहत मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग (Bihar Health Department) के निदेशक प्रमुख डॉ नवीन चंद्रा मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि लिंफेटिक फाइलेरायसिस या हाथी पांव एक पीड़ादायक और कुरूप करने वाला रोग है. यह संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है.
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भारत में 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 272 जिलों में 65 करोड़ लोगों को इस रोग से खतरा है. दुनियाभर में फाइलेरियासिस के मामले में 45 फीसदी मामले भारत में हैं. भारत सरकार द्वारा फाइलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के माध्यम से नियोजित रणनीति के तहत मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की प्रक्रिया प्रमुखता से अपनाई जाती है, जिसमें जिन्हें फाइलेरिया का खतरा है, उन्हें फाइलेरिया के लिए रिकमेंड दवा साल में दो बार खिलाई जाती है.
बिहार में लिंफेटिक फाइलेरिया के 125002 मामले हैं, जबकि हाइड्रोसील फाइलेरिया के 46360 मामले हैं. राजधानी पटना की बात करें तो पटना में लिंफेटिक फाइलेरिया के 3420 मामले हैं. फाइलेरिया के मामले में सर्वाधिक मरीज समस्तीपुर जिला में है जहां लिंफेटिक फाइलेरिया के 66758 और हाइड्रोसील के फैलेरिया के 34494 मामले हैं.
"फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है. इसमें जान का खतरा नहीं होता है लेकिन जीवन काफी कष्टदायक हो जाता है.यह संक्रमित मच्छर के काटने से होता है और इसका संक्रमण सामान्य तौर पर बचपन में हो जाता है. इस बीमारी में शरीर का लिंफेटिक सिस्टम क्षतिग्रस्त हो जाता है. यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह संक्रमण बाद में बढ़ जाता है जिसके कारण शरीर के अंग असामान्य रूप से बढ़ने लगते हैं."-डॉ नवीन चंद्र, निदेशक प्रमुख,स्वास्थ्य विभाग
डॉ नवीन चंद्र ने बताया कि फाइलेरिया के इलाज के लिए अब तक कोई कारगर दवा नहीं आई है. मगर इसे कंट्रोल करने के लिए जरूर दवाइयां तैयार कर ली गई हैं. अगर समय पर दवाइयां खाई जाए तो फाइलेरिया का बैक्टीरिया जो शरीर के अंदर रहता है, वह नष्ट हो जाता है.