पटना: बिहार में चिराग पासवान (Chirag Paswan in Bihar By Election) बीजेपी के लिए मौजूदा वक्त में संजीवनी से कम साबित नहीं हो रहे हैं. एलजेपीआर की माने तो पहले गोपालगंज और अब कुढ़नी में बीजेपी की जीत के बड़े फैक्टर साबित हुए हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी चिराग पासवान फैक्टर बने थे. इस कारण बीजेपी को जेडीयू से ज्यादा सीटें आई थी. बीजेपी भी चिराग पासवान को जीत का एक फैक्टर बता रही है.
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बीजेपी के लिए संजीवनी से कम नहीं चिरागःपाॅलिटिकल एक्सपर्ट डॉ. संजय की माने तो चिराग पासवान दो उपचुनाव जीत के साथ-साथ 2020 के विधानसभा चुनाव में भी फैक्टर थे. 2020 के चुनाव में जहां-जहां चिराग पासवान के कैंडिडेट खड़े थे, वहां महागठबंधन की जीत और एनडीए की हार हुई थी. चिराग पासवान एक बार फिर से बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिहार के उपचुनाव के दो सीटों पर जीत का कारण इनके मतदाता रहे हैं, जो रामविलास पासवान के बाद चिराग पासवान को अपना नेता मानते हैं. उनकी भीड़ और उनकी उपस्थिति वोट में तब्दील करना एक मैसेज तो है कि चिराग पासवान बीजेपी के लिए संजीवनी से कम नहीं साबित हो रहे हैं.
दलितों की गोलबंदी से जीती बीजेपीःडॉ. संजय ने कहा कि जो बीजेपी चिराग पासवान से दूरियां बना ली थी, वह जैसे ही उपचुनाव आया नजदीकियां बढ़ जाती है. आखिर सवाल यह भी उठ रहा है कि चिराग पासवान अगर कुछ फैक्टर नहीं होते तो बीजेपी उन्हें क्यों मनाने में जुटी थी. कहीं न कहीं दलित वोटर चिराग पासवान के इर्द-गिर्द ही घूम रहे हैं. इसको बीजेपी जानती थी और इस बात को महागठबंधन के लोग भी मान रहे हैं कि दलितों और अति पिछड़ों में महागठबंधन को वोट नहीं किया है. कुढ़नी और गोपालगंज में दलित और गरीब तबके के लोगों ने मजबूती से बीजेपी को वोट दिया है. दलितों की गोलबंदी और चिराग पासवान की उपस्थिति से ही बीजेपी की जीत सुनिश्चित हो पाई है.
पासवान जाति का वोटिंग पैटर्न दोनों जगह अहमः कुढ़नी विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत तीन हजार 649 वोट से हुई है. कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र का समीकरण के अनुसार कुढ़नी में पासवान जाति के वोटरों की तादाद लगभग 10 हजार है. अहम बात ये भी है कि पासवान जाति के वोटरों का वोटिंग परसेंटेज ज्यादा होता है. वैसे ही गोपालगंज में भी हुआ था. वहां भी लगभग 12 हजार वोटर पासवान जाति के थे.