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नवरात्रि विशेष 2022: यहां गिरा था मां सती का दायां नेत्र, 52 शक्तिपीठों में शामिल है तारा चंडी धाम

रोहतास जिले के सासाराम में स्थित ऐतिहासिक शक्तिपीठ मां तारा चंडी धाम (Shaktipeeth Maa Tara chandi Dham) में पूजा-अर्चना शुरू हो गई है. आज से अगले नौ दिन तक यहां भक्तों की भीड़ देखने को मिलेगी. ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त आते हैं, उनकी मानोकामनाएं जरूरी पूरी होती है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

तारा चंडी धाम
तारा चंडी धाम

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Published : Sep 28, 2022, 6:01 AM IST

पटना:नवरात्र देवी दुर्गा की आराधना का उत्सव है. ऐसे में देशभर के विभिन्न देवी स्थानों में पूजा-अर्चना चल रही है, उन्हीं देवी स्थानों में सासाराम का प्राचीन तारा चंडी मंदिर (Shaktipeeth Maa Tara chandi Dham) है. जहां नवरात्र में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु मनोकामना सिद्धि के लिए पहुंचते हैं. दरअसल इस प्राचीन ताराचंडी देवी स्थान को लेकर यहां के लोगों में अगाध श्रद्धा है. वैसे तो सालो भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में यहां का महत्व काफी बढ़ जाता है. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं, उनकी तमाम मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, इस देवी को मनोकामना सिद्धि भी कहते हैं।.

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यहां गिरा था मां सती का दाहिना आंख: मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब संपूर्ण सृष्टि भयाकूल हो गयी थीं तभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था. जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया. सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है. वहीं मंदिर के शिलालेख से स्पष्ट होता है कि 11वीं सदी में भी यह देश के शक्ति स्थलों में से एक था.


देवी को पसंद है पूरी और हलवा:कैमूर पहाड़ी के तलहटी में गुफाओं के कन्दरा में बसी देवी की आराधना करने से इच्छित फल प्राप्त होता है. सबसे बड़ी बात है कि मान्यता के अनुसार यह शाकाहारी देवी हैं, जो 'पूरी और हलवा' के भोग से ही संतुष्ट हो जाती हैं और लोगों को मनचाहा वर देती हैं. इतना ही नहीं, यहां 'दीपदान' की भी अद्भुत परंपरा है. जो सदियों से चली आ रही है.

परिसर में जगमगाते हैं अखंड दीप:देवी स्थान पर नवरात्रि में यहां लोग अखंड दीप जलाते हैं. हजारों अखंड दीप से पूरा परिसर जगमग हो जाता है. शुद्ध घी के दीये की लौ पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है. पुजारी कहते हैं कि सच्चे हृदय से पूजा-अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की तमाम कामनाएं पूर्ण होती हैं.

"महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था. यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी. इस शक्तिपीठ में मां ताराचंडी बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं. वहीं सुव्यवस्थित पूजा अर्चना तथा श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिले इसके लिए यहां की कमेटी 24 घंटे तत्पर रहती है. सुदूरवर्ती इलाके में अवस्थित होने के कारण यहां की विधि-व्यवस्था के लिए प्रशासन भी पहल करती है. मंदिर कमेटी श्रद्धालुओं को वह तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराती है, जिससे उन्हें कोई परेशानी न हो."-गौरी शंकर पांडेबताते, पुजारी

नवरात्र में होता है भंडारा: बता दें कि पूरे नवरात्र चलने वाले भंडारे में श्रद्धालु भी भोजन करते हैं. साथ ही दूरदराज से आने वाले भक्तों के लिए मंदिर परिसर में ठहरने की भी व्यवस्था है. कैमूर पहाड़ के कन्दरा में स्थित देवी की अद्भुत प्रतिमा का दर्शन करने से ही लोगों को सौभाग्य प्राप्त होता है. मंदिर कमेटी के लोग भी भक्तों के स्वागत में लगे रहते हैं. सासाराम के पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद कहते हैं कि जो भी श्रद्धालु यहां आते हैं, उनकी इक्षित इच्छाएं पूर्ण होती है.

भगवान परशुराम की थी देवी की अराधना: गौरतलब है कि कैमूर पहाड़ी के तलहटी में बसा ताराचंडी देवी स्थान का नवरात्रि में विशेष महत्व है. इसलिए इस नवरात्रि एक बार यहां पूजा अर्चना के लिए जरूर जाएं. लोग इसे शक्तिपीठ भी कहते हैं, ऐसी मान्यता हैं कि भगवान परशुराम ने भी यहां आकर देवी की आराधना की थी.



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