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सफलता के साथ नीतीश को झटका भी देकर जा रहा 2020

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2020 कई मायनों में उपलब्धियों भरा रहा तो उन्हें झटका भी देकर जा रहा है. मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी तरह जाते-जाते बची. जदयू 43 सीटों पर सिमट गई. तेजस्वी न केवल कोरोना के समय बल्कि बाढ़ और फिर चुनाव के दौरान भी नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे. तेजस्वी के कारण नीतीश कई बार आपे से बाहर होते नजर आए. विधानसभा सत्र के दौरान सदन के अंदर उनका रौद्र रूप पहली बार दिखा.

Nitish kumar
नीतीश कुमार

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Published : Dec 22, 2020, 7:05 AM IST

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2020 कई मायनों में उपलब्धियों भरा रहा तो उन्हें झटका भी देकर जा रहा है. कोरोना काल में हुए विधानसभा चुनाव में जहां एनडीए को उनके नेतृत्व में बहुमत मिली तो वहीं उनकी अपनी पार्टी जदयू तीसरे नंबर पर पहुंच गई. मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी तरह जाते-जाते बची.

कई मंत्री हार गए चुनाव
जदयू के कई मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए और पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई. सीटों की संख्या कम होने के कारण विधानसभा अध्यक्ष पद भी हाथ से निकल गया. सुशील मोदी को बीजेपी ने उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया. यह सब नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा झटका रहा. हालांकि इसी दौरान नीतीश ने 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर रिकॉर्ड बनाया. नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी दो दशक से चर्चा में रही है, लेकिन 2020 के अंत में यह जोड़ी टूट गई. सुशील मोदी राज्यसभा चले गए. अब वह दिल्ली मैं अपनी भूमिका निभाएंगे.

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कोरोना काल में विपक्ष के निशाने पर रहे नीतीश
नीतीश कुमार ने कोरोना काल में कई बड़े फैसले किए. वह लॉकडाउन के दौरान लंबे समय तक मुख्यमंत्री आवास से बाहर नहीं निकले, जिसके चलते विपक्ष के निशाने पर रहे. लॉकडाउन के दौरान देशभर से लौटे प्रवासियों के लिए व्यवस्था में कमी और कोटा में पढ़ रहे छात्रों को लाने में आनाकानी के चलते भी विपक्ष को निशाना साधने का मुद्दा मिला. बाद में प्रवासियों को ट्रेन से लाने की विशेष व्यवस्था हुई. उन्हें क्वारैंटाइन भी किया गया. कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को बदले जाने के कारण भी खूब चर्चा हुई.

खट्टी-मीठी यादें दे गया चुनाव
विधानसभा चुनाव 2020 नीतीश कुमार को कई खट्टी मीठी यादें दे गया. एक समय ऐसा लग रहा था कि विपक्ष से कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन तेजस्वी यादव द्वारा किए गए 10 लाख बेरोजगार युवाओं को सरकारी नौकरी देने के वादे ने पूरा गेम ही बदल दिया था. रही सही कसर लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की नाराजगी ने पूरी कर दी थी.

लोजपा ने जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारा, जिसका खामियाजा नीतीश कुमार को भुगतना पड़ा. एग्जिट पोल में तो नीतीश की सत्ता जाती दिखी. 3 फेज में हुए विधानसभा चुनाव में पहले फेज में जदयू का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा. मगध में तो खाता तक नहीं खुला. शाहाबाद की स्थिति भी बहुत ही दयनीय रही. दूसरे व तीसरे फेज में स्थिति बेहतर हुई, लेकिन लोजपा के कारण पार्टी को बहुत ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा और जदयू केवल 43 सीट पर सिमट गई.

एनडीए में बीजेपी 74 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. कम सीट लाकर भी नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनें. हालांकि पिछले 15 साल में पहली बार बीजेपी बिहार एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में नजर आ रही है. विधानसभा चुनाव में राजद 75 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई.

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सदन में पहली बार दिखा नीतीश का रौद्र रूप
नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए की सरकार बनी, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष का पद जदयू को खोना पड़ा. अधिक संख्या बल होने के कारण बीजेपी को अध्यक्ष पद मिल गया. बीजेपी के दो नेता डिप्टी सीएम बने. तेजस्वी न केवल कोरोना के समय बल्कि बाढ़ और फिर चुनाव के दौरान भी नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे. तेजस्वी के कारण नीतीश कई बार आपे से बाहर होते नजर आए. विधानसभा सत्र के दौरान सदन के अंदर उनका रौद्र रूप पहली बार दिखा.

पहली बार हावी होती दिख रही बीजेपी
नीतीश कुमार काफी समय से एनडीए में है. कई बार विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया, लेकिन पहली बार बीजेपी नीतीश पर हावी होती दिखी. चुनाव से ठीक पहले नीतीश जीतन राम मांझी को एनडीए में लाने में जरूर सफल रहे, लेकिन नीतीश कुमार के लिए विधानसभा चुनाव कई तरह का दर्द दे गया. कभी मुसलमानों के नाम पर बीजेपी के बड़े नेताओं से दूरी बनाने वाले नीतीश कुमार को बड़ा झटका विधानसभा चुनाव में यह भी लगा कि पहली बार जदयू का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता.

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नया साल, नई उम्मीद, बड़ी चुनौती
कम संख्या बल लाकर भी नीतीश कुमार 2020 में फिर से मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन इससे उनकी चुनौती बढ़ गई है. नए साल में उन्हें रोजगार, क्राइम और कोरोना जैसी चुनौतियों से जूझना होगा.

रोजगार:बिहार में बेरोजगारी अब प्रमुख मुद्दा बन गया है. राजद ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया तो एनडीए को 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा करना पड़ा. सत्ता में आने के बाद अब इस वादे को पूरा करने की चुनौती है.

क्राइम:नीतीश कुमार की छवि अच्छे शासक की रही है जो लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने से समझौता नहीं करता, लेकिन जिस तरह 2020 में अपराध की घटनाएं बढ़ी इससे नीतीश की इस छवि को नुकसान पहुंचा है. नए साल में नीतीश के सामने बिहार में अपराध पर लगाम लगाने की चुनौती है ताकि सुशासन की छवि बरकरार रहे.

कोरोना:विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार में हर किसी को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन लगाने का वादा किया था. नए साल में इस वादे को पूरा करने की चुनौती है. नीतीश ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि कोरोना की वैक्सीन के आने के बाद इसे बिहार में पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम की तर्ज पर ही लोगों को उपलब्ध कराया जाए.

पार्टी:जदयू के 43 उम्मीदवार ही विधानसभा चुनाव जीत पाए. नीतीश के सामने जदयू को फिर से मजबूत करने की चुनौती है. नीतीश बूथ स्तर तक पार्टी का संगठन मजबूत करने में लगे हैं. इसके साथ ही पार्टी से महिलाओं और युवाओं को जोड़ने की कवायद तेज की जा रही है.

बंगाल चुनाव:अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव होने वाला है. जदयू ने भी विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है. पार्टी ने 75 विधानसभा सीट का चुनाव भी कर लिया है. नीतीश के सामने नए साल में चुनौती होगी कि वह बिहार से बाहर पार्टी की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकें.

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