मुजफ्फरपुर:कभी लीची के शहद उत्पादन से जिले के किसानों के जीवन में खुशहाली की मिठास घुलती थी. लेकिन मुजफ्फरपुर का वही शहद कारोबार अब किसानों के लिए बर्बादी का सबब बन गया है. जिस शहद कारोबार के जरिए जिले के मधुमक्खी पालक कभी हजारों लोगों को रोजगार मुहैया कराते थे. अब खुद उनका परिवार कर्ज में डूबा हुआ है और वह दाने-दाने को मोहताज हैं. जिस मुजफ्फरपुर के शहद कारोबार को जिले के करीब 50 हजार से अधिक शहद पालक किसानों ने अपनी मेहनत के बल पर आसमान की ऊंचाई तक पहुंचाया था. वही स्वरोजगार का यह कारोबार अब जमींदोज हो चुका है.
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1 हजार करोड़ का करोबार सौ करोड़ पर सिमटा
दरअसल, देश में कोरोना के आगमन ने इस पूरे व्यवसाय की ऐसी कमर तोड़ी की सालाना 10 से 12 लाख तक का कारोबार करने वाले किसानों की सारी जमापूंजी एक झटके खत्म हो गयी. लॉकडाउन में लीची के बागों में फंसे-फंसे सारी मधुमक्खियां लीची बागानों में ही भूख की वजह से मर गई. इस वजह से करीब 1 हजार करोड़ का कारोबार करने वाले यह कारोबार अब मुश्किल से 100 करोड़ का भी नहीं बचा है. कोरोना की वजह से पूरी तरह बर्बाद हो चुके इस क्षेत्र में काम करने वाले मधुपालकों की संख्या भी अब 50 हजार से घटकर महज 4 से 5 हजार तक की रह गई है.
दूसरे राज्यों तक व्यवसाय ने फैलाया पंख
बोचहां, मीनापुर, कांटी, कुढ़नी, मुशहरी, गायघाट, पारू, साहेबगंज, औराई, प्रखंड के करीब तीन सौ से अधिक गावों में किसान मधुमक्खी पालन के काम में दिन रात लगे रहते थे. यही नहीं मुजफ्फरपुर के मधुपालक किसान बिहार के साथ साथ झारखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान तक जाकर शहद उत्पादन का काम करते थे. लेकिन कोरोना की काली नजर इस कारोबार को ऐसी लगी कि मिठास भरा यह कारोबार पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.