मधेपुरा: जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी और इंजीनियर पर राज्य सूचना आयोग का डंडा चला है. आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा मांगी गई सूचना समय पर नहीं देने के कारण राज्य सूचना आयोग ने कार्यपालक पदाधिकारी और इंजीनियर पर 25 हजार रुपये का जुर्माना ठोका है. उन्हें यह जुर्माना अपने वेतन से भरना पड़ेगा. इतना ही नहीं गबन की गई राशि भी अधिकारियों ने सरकारी कोष में वापस जमा किया.
जानकारी देते डॉ0 राजीव जोशी, आरटीआई कार्यकर्ता सह एडवोकेट बता दें कि मधेपुरा जिला मुख्यालय स्थित बस स्टैंड के पास 25 लाख रुपये की लागत से जिला परिषद के विकास मद से साल 2015 में नया मार्केट परिसर और उसमें वृहद पैमाने पर दुकान निर्माण कराया जाना था. इसके लिए स्वीकृत राशि की निकासी कर निर्माण कार्य प्रारंभ भी किया गया. लेकिन विवादित जमीन होने के कारण न्यायालय ने निर्माण कार्य पर तत्काल रोक लगा दिया. निर्माण कार्य के नाम पर निकाली गई अग्रिम राशि जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी और इंजीनियर द्वारा सरकारी कोष में वापस जमा करने के बजाय बंदर बांट कर खा गये.
राज्य सूचना आयोग ने दिया आदेश
स्थानीय आरटीआई कार्यकर्ता सह एडवोकेट डॉ0 राजीव जोशी ने इस मामले में साल 2015 में ही सूचना विभाग से मार्केट कॉम्पलेक्स निर्माण के नाम पर निकाली गई अग्रिम राशि के बारे में जानकरी लेनी चाही. उन्होंने निकाली गई राशि सरकारी कोष में कब और कितना वापस जमा किया गया है इसकी जानकारी उपलब्ध कराने को लेकर सूचना की मांग की थी. लेकिन कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा सूचना उपलब्ध नहीं कराया गया. इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता डॉ0 जोशी ने मामले को राज्य सूचना आयोग में दायर किया. राज्य सूचना आयोग ने मामले की सुनवाई के बाद उक्त अधिकारी को आदेश दिया कि आवेदक को समय पर सूचना उपलब्ध करायी जाय. फिर भी लापरवाह अधिकारी ने जबाब नहीं दिया और ना ही आवेदक को सूचना उपलब्ध कराया.
अधिकारी ने आदेश के बाद कराया सूचना उपलब्ध
इसके बाद राज्य सूचना आयोग ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पदाधिकारी को अपने वेतन से 25 हजार रुपये जुर्माना के रूप में सरकारी कोष में जमा करने और आवेदक को उक्त सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. राज्य सूचना के सख्त आदेश के बाद अधिकारी की नींद खुली और उसने निर्माण कार्य के नाम पर निकाली गई अग्रिम राशि चार साल बाद सरकारी कोष में वापस करते हुए आवेदक को सूचना भी उपलब्ध कराया.